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________________ पत्नीको सुमार्गपर रखें विवरण- भार्या गृहस्थरूपी शरीरका आधा भाग है। जिसका माधा शरीर दुष्ट होता है उसका दुःखी रहना अनिवार्य होजाता है । मनस्वी लोग गार्हस्थ्य जीवन का लक्ष्य इसीको मानते हैं कि अपनी भार्या के साथ संबन्ध रखनेवाले मानव-धर्मके लोहबन्धनको अपने ऊपर सत्यके शासनके रूपमें स्वीकार करें और अपने मापको समाजसेवामें लगाये रहें। यह धर्म स्त्री पुरुष दोनोंको ही पालना चाहिये । इम धर्मबन्धनको तोडफंकनेवाली दुष्का लन अपने धार्मिक पतिके मानवधर्मपालनकी विघ्न बनजाती है तथा उसके सम्मुख दो कर्तव्य उपस्थित करदेती है कि या तो अपनी भार्याको योग्य सहधर्मिणी बनाकर उसे अपने जीवनका सुयोग्य साथी बनाकर रक्खे, या (उसके किसीप्रकार योग्य बननेकी संभावना शेष न रह जानेपर ) उसे ( दुष्टा भार्याको ) त्याग दे । अर्थात् स्त्रीसम्बद्ध मानवधर्मका परित्याग करके स्त्रीनिरपेक्ष मानवधर्मको अपनाकर शुद्ध समाजसेवामें दीक्षित होजाय । पाठान्तर- ..... शरीरकर्षणम् । ( अप्रमत्तपति पत्नीको सुमार्गपर रखने का अधिकारी ) अप्रमत्तो दारान् निरीक्षेत् ॥ ३५९ ॥ मनुष्य प्रमादरहित होकर सहधर्मिणीका निरीक्षण करे । विवरण- अपनी भार्याको प्रमादसे बचाना और उसे भादर्शगाईस्थ्यधर्म में दीक्षित करके उसे समाजसेवाका व्रत देकर रखना स्वयं प्रमाद. रहित मनस्वी व्यक्तिका ही काम है । भर्ताका अपनी सहधर्मिणीके निरीक्षणका अधिकार तब ही स्वीकार किया जाप्तकता है तथा भार्याका पतिको भर्ताके रूप में स्वीकार करना तब ही कुछ अर्थ रखसकता है, जब दोनों समाजसेवाको अपना लक्ष्य रखते हो। अर्थात् जब दोनों अपने समाजके सामने अपना उपचादर्श रखना पवित्र कर्तव्य मानते हों। जहां पति-पत्नी दोनोंका प्रमादरहित होना आवश्यक है, वहां दोनों में एक दूसरेका निरीक्षण करने की योग्यताका रहना भी अनिवार्य रूपसे आवश्यक है । अथवा- जब मनुष्य स्त्रियोंकी ओर देखे तब अप्रमत्त अर्थात् निष्काम अप्रमादी स्थिरतत्वदर्शी, आत्मसम्मानी तथा जितेन्द्रियमनवाला होकर देखे।
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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