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________________ ३१८ चाणक्यसूत्राणि (नियुक्तिकी योग्यता ) यो यस्मिन् कुशलः स तस्मिन् योक्तव्यः ॥३५७॥ जो जिस काममें कुशल हो उसे उसी काममें लगाना चाहिये। विवरण- जो मनुष्य अध्यक्षता, मन्त्रिता, विचार, निरीक्षण, न्याय, श्रम, कोष, वाणिज्य, दौत्य भादि जिस कर्ममें कुशल हो उसे उसी काममें लगाना चाहिये । किप्लीको किसी काम या पदपर नियुक्त करते समय उस कर्मकी कुशलता ही योग्यताके रूपमें स्वीकृत होना चाहिये, सिफारिश या उत्कोच आदि नहीं। कर्मकुशलतासे विरोध करनेवाली दूसरी सब योग्यतायें अस्वीकृत होनी चाहिये। सिफारिशों या उस्कोचोंके बलसे अयोग्य लोगों की नियुक्तियोंसे कर्मकी हानि तथा देशमें अविचारकी परम्पर: चल निकलती है। कर्मकुशलता ही राज्य-व्यवस्था-संचालनकी योग्यताके रूपमें स्वीकार की जानी चाहिये । व्यक्तिगत स्वार्थ मनुष्यकी कमकुशल. ताका सबसे बडा बाधक है । जब भकुशल लोगोंको राज्याधिकार सौंप दिया जाता है तब वे राजकाज करते समय अपने व्यक्तिगत स्वार्थको महत्व देते हैं तथा परिणामस्वरूप राज्यव्यवस्थाको ससम्पन करनेकी ओरसे उदासीन होजाते हैं । उस अवस्थामें राष्ट्रकल्याण उपेक्षित होजाता है तथा स्वार्थी राज्यधिकारियोंकी दुष्प्रवृत्तिको छूट मिल जाती है। यदि नये राजकर्मचारि. योको नियुक्त करनेवाले लोग उत्कोचजीवी चाटुकारिताप्रिय तथा देशद्रोही हो तो वे राज्यसंस्थामें दुष्प्रवृत्तियोंसे लाभ उठाना चाहनेवाले उस्कोचजीवी चाटुकार देशद्रोहियों को ही भरलेते हैं तथा अपने दोषसे उस राज्यसंस्थाको राष्ट्रद्रोही संस्था बनादेते हैं । पाठान्तर- यस्मिन् कर्मणि यः कुशलः स तस्मिन्नियोक्तव्यः । ___ ( दुष्कलत्रकी दुखदायिता ) दुष्कलनं मनस्विनां शरीरकर्शनम् ।। ३५८॥ मनस्वी लोग दुष्ट भार्याको क्लेश तथा उद्वेग करनेवालीके रूपमें देखते हैं।
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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