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________________ ३०८ चाणक्यसूत्राणि जाती है । वही काम एकके लिये दुष्कर तथा दूसरेके लिये सुकर होता है। धीरके लिये सत्यार्थ मरना सुकर है कायरके लिये सत्यार्थ मरना दुष्कर है। जो जिसके लिये प्रस्तुत है वह उसके लिये सुकर है। जो जिसके लिये प्रस्तुत नहीं है वही उसके लिये दुष्कर है। सुकरता दुष्करता मनकी कल्पना है । ये कर्मके धर्म न होकर मन के धर्म हैं। अब सोचिये कि ऐसे चिरपरिचित ठगोंका त्याग दुष्कर कैसे है ? सूत्र निर्बल मनवालोंकी स्थितिको कह रहा है और सबल मनवालोंकी स्थितिके सम्बन्धमें चुप रहकर इसका निर्णय पाठकोंके ऊपर छोडरहा है। गौकरा श्वसहस्रादेकाकिनी श्रेयसी ॥ ३४७ ॥ जैसे विग्गड भी अकेली गौ सहन कुत्तोंसे अधिक उपकारी होती है इसीप्रकार उपचारहीन रूखा भी उपकारी व्यक्ति अनु. पकारी सहस्रों ठग परिचितोंसे श्रेष्ठ होता है। विवरण- उपकारस्वभाववाला चाह एक ही हो उसे अपनाओ अनुप. कार स्वभाववाले सहस्रोंको त्याग दो। संख्याधिक्यका भरोसा न करके गुणका भरोसा करो । गुण ही ग्राह्य है संख्याधिक्य नहीं। ( अधिक सूत्र ) श्वः सहस्रादयकाकिनी श्रेयसी। जैसे भविष्यमें मिलनेवाले सहस्र धनसे वर्तमानमें मिलनेवाली दमडी ( छदाम ) श्रेष्ठ होती है, इसीप्रकार भविष्यके कल्पित महालाभकी अपेक्षा प्रत्यक्षका अल्पलाभ श्रेष्ठ है। वराटकानां दशकद्वयं यन् सा काकिनी ताश्च पणश्चतस्रः। बीस कौडीको एक काकिनी चार काकिनीका एक पण । ( वर्तमान छोटी स्थिति आशाके बडे मेघोंसे अच्छी ) श्वो मयूरादद्य कपोतो वरः ॥ ३४८ ॥ भविष्यमें मिलनेवाले बडे मोरसे अब मिलनेवाला छोटासा कबूतर अच्छा है।
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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