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________________ निर्बल से सदोष नहीं छोडे मनुष्यताविरोधी मूर्खता है । जब तुम्हारे पास चिरपरिचित लोग तुम्हारे सामने बढ बढकर लोभनीय सामग्री रखकर भक्ति प्रदर्शित कर रहे हों तब तुम्हारे मनमें उनकी गुप्त स्वार्थी मानसिक स्थितिके संबन्धमें शंका होजानी चाहिये कि आज ये अपने किसी विशेष स्वार्थसे मेरी इस प्रकारकी दिखावटी अतिसेवा कर रहे हैं । चिरपरिचितोंकी समुचित स्वाभाविक सेवा कभी संदेहका कारण नहीं होती । परन्तु जब कोई सेवा सेव्य सेवक दोनोंकी दृष्टि से मौचित्यका अतिक्रमण करजाती है तब उस सेवाको संदेद्दकी दृष्टिसे देखना और अस्वीकार करदेना चाहिये । I ३०७ ( निर्बल से सदोष परिचित नहीं छोडे जाते ) ( अधिक सूत्र ) चिरपरिचितानां त्यागो दुष्करः । जब चिरपरिचित लोग लोभोपादानोंसे वशीकरण मंत्र चलाने लगे तब उनका या उनके उपचारोंका त्याग निर्बल मनवालेके लिये दुष्कर होजाता अर्थात् तन, त्याग और ग्रहणकी विकट समस्या खडी होजाती है । विवरण- ऐसे समय उन आत्मीय कहलानेवाले ठगकी ठगाईसे बचे रहनेका सूक्ष्म, गंभीर, जटिल कर्तव्यरूपी परीक्षावसर उपस्थित होजाता है । उस समय दो परस्परविरोधी ग्राह्य वस्तुओंमेंसे एकको स्वीकार तथा दूसरों को अस्वीकार कर देनेका प्रश्न उपस्थित होजाता है । तब उन परिचित ठगों से आत्मरक्षा करनी चाहिये । ऐसे समय उन परिचित ठगकी बात तथा अपने धर्मरक्षा नामक कर्तव्यका पालन इन दो विरोधी प्रसंगको धर्मतुरु या कर्तव्यतुला के दो पलडोंपर रखकर तोकना चाहिये । उस समय अपने धर्मरक्षक कर्तव्यको महत्व देनेसे ही उन धूतांके त्यागकी दुष्करताको हटाया जासकता है। दुष्कर या कठिन संसार में कुछ नहीं है। जिसके लिये जो प्रस्तुत नहीं है वही उसके लिये दुष्कर या कठिन है | कठिनताके प्रति कठोर होते ही कठिनता या दुष्करता, मृदुता तथा सुकरतायें परिणत हो
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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