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________________ ३०६ ( धूर्तोका वशीकरण मन्त्र ) सोपचारः कैतवः ॥ ३४४ ॥ धूर्तलोग दूसरोंके कपटसेवक बनाकरते हैं । विवरण - धूर्तलोग मीठी बार्तो, रमणीय उपहारों, परितोषक उपकरणोंसे अपना उल्लू सीधा करना चाहाकरते हैं । सेवा तथा परितोषके उपकरण उपचार ' कहाते हैं । उपचार शब्द उत्कोच अर्थ में भी व्यवहृत होता है । · पाठान्तर---- नोपचारः कैतवः यह पाठ अर्थहीन है । चाणक्यसूत्राणि । ( धूर्ततावाली सेवा उपचार है ) काम्यैर्विशेषैरुप चरणमुपचारः ।। ३४५ ।। विशिष्ट काम्य पदार्थोंकी भेटोंसे दूसरोंको अपनी असत्यकी दासतामें सहायक बनानेका प्रयत्न करना धूर्तीकी सेवाका स्वरूप होता और यही ' उपचार ' कहाता है । विवरण - धूर्तलोग अपने सेव्य मनुष्यकी नीचप्रवृत्तियोंकी तृप्ति के लिये इंधन जुटाकर उसकी गिरावटसे लाभ उठाने की दुरभिसंधि रखते हैं । भूतों की सेवा भी प्रच्छन्न लूट ही होती है । ( शंकनीय सेवा ) चिरपरिचितानाम् अत्युपचारः शंकितव्यः ॥ ३४६ ॥ चिरपरिचित व्यक्तिकी अनुचित सेवा शंकनीय होनी चाहिये । विवरण - किसीकी भी अनुचित सेवाको शंकाकी दृष्टिसे देखना चाहिये । विशेष रूप से चिरपरिचितकी अनुचित सेवा चाटुकारिता है । अत्युपचार चाटुकारिताका ही दूसरा नाम है । चाटुकार के फंदे में फंसजाना
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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