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________________ दान कितना दें? २९७ गुरु होना चाहिये । कार्यको लघुता या गुरुताके अनुसार सामग्री एकत्रित करके कार्यका उपक्रम करना चाहिये । जैसे साधन जुटाये जायगे, जैसा प्रयत्न किया जायगा, वैसा ही फल प्राप्त होगा। कर्तव्य छेडनेसे पहले उसका उचित समय, उसके सहायक, उसके अनुरूप देश, अपनी धनशक्ति, उत्साहशक्ति, उससे होनेवाले लाभ तथा अपनी कर्मशक्तिकी इयत्तासे पूरा परिचित होना चाहिये । कर्तव्य प्रारंभ करनेसे पहले सोचना चाहिये यह काम मेरे स्वयं करनका है या दूसरोंसे करानेका है ? अपने व्यक्तिगत स्वार्थ के लिये है ? या समाजकी उचित सेवाके लिये है ? अभी करने का है ? या भवि. ष्यमें हितकारी है ? या मनिष्ट संभावनामोंसे भरपूर है ? कः कालः कानि मित्राणि को देशः को व्ययागमौं । को वाहं का च मे शक्तिरिति चिन्त्यं मुहुर्महुः ॥ कार्योपयोगी काल सहायक भित्र कार्योपयोगी देश है या नहीं ? मेरे आयव्यय इस कार्यको करने की आज्ञा देते हैं या नहीं ? मेरी स्थिति क्या है ? मुझे यह काम करना चाहिये या नहीं ? यह मेरी शक्ति में है या शक्तिसे बाहर है ? ये सब बात प्रत्येक काममें सदा सोचनी चाहिये । इन प्रश्नों का उचित समाधान होने पर ही काम करना चाहिये। (दान कितना दें ?) पात्रानुरूपं दानम् ।। ३३३ ।। दान तथा उसकी मात्रा, दानपात्रकी उत्तमता, मध्यमता तथा अधमता अर्थात् उसकी विद्या, गुण, अवस्था तथा आवश्यकता रूपी योग्यताके अनुसार होना चाहिये ! विवरण-- दीन, रोगी, निराश्रय, अनाथ, पंगु, अंधे, विपन, निर्धन, विद्यार्थी, देव, द्विज, गुरु, विद्वान् की जीवनयात्रा तथा समाजोत्थानके कामों में विभवानुसार दान देकर अपने समाजको सुखी, सम्पन्न, सद्गुणी बनाये रखना
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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