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________________ २९६ चाणक्यसूत्राणि रहित शिष्टाचार की सीमासे शासित रहकर उसमें सम्मिलित हुआ करे । विज्ञ मनुष्योंका कर्तव्य है कि वे अपने परिवार के सदस्योंसे भी वेशभूषा के सम्बन्धमें सामाजिक सुरुचिको सुरक्षित रखवानेका ध्यान रक्खें । देहको अलंकृत करनेके अधिकार को अपना सीमोल्लंघन करने देना कदापि अभीष्ट नहीं है । ( आचरण कैसा हो ? ) कुलानुरूपं वृत्तम् || ३३१ ॥ आचरण अपने अभ्यर्हित कुलके अनुरूप होना चाहिये । 7 विवरण -- अपने आचरणोंसे अपने यशस्वी कुलको मर्यादाकी रक्षा करनी चाहिये | ज्ञानीसमाज ही मनुष्यका कुल हे । ज्ञानीसमाज ही राष्ट्रकी राजशक्तिका निर्माता है । वही प्रभु या स्वामी बनकर राजशक्तिको सर्वहितकारी ज्ञानमार्ग पर चलाता है । इसलिये प्रत्येक मनुष्यका, ज्ञानी समाजका सदस्य बने रहना ही अपना स्वाभिमान है। इस बातको कभी न भूलकर अपने स्वभावको सामाजिक सुख-समृद्धि में सीमित रखना चाहिये । ज्ञानी ही मनुष्यसमाजका यशस्वी विशाल कुल है । ज्ञानियोंके कुल में जन्म लेनेवालोंसे यह आशा की जाती है कि उनका सदाचार उनकी नीतिपरायणता आदि ऊंची श्रेणीकी हो । उनका आचार निर्मल तथा हृदयप्राही हो । निकृष्ट आचरण बताते हैं कि यह मनुष्य किसी हीन कुलकी प्रसूति है । पाठान्तर-- कुलानुरूपं वित्तम् । वित्त मनुष्य के पास अपनी कुळपरम्पराकी उपार्जन योग्यता के अनुसार होता है । ( प्रयत्न कितना हो ? ) कार्यानुरूपः प्रयत्नः ॥ ३३२ ॥ प्रयत्न कर्मके अनुसार होना चाहिये । विवरण- कार्यकी लघुता या गुरुता के अनुरूप ही प्रयत्न भी लघु या
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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