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________________ २६४ चाणक्यसूत्राणि सिंहासनपर आरूढ रहकर अमर बनारहता है । रस ( अर्थात् कर्तव्यपालनके मानन्द ) से स्निग्ध वे सुकर्मा कवीश्वर लोग विश्वविजय पाचुके हैं, जिनके यशःशररिको वृद्ध तथा मृत होनेका कोई भय नहीं है। संसारमें अपनी विद्वत्तारूपी लक्ष्मी तथा धर्मकी धाक बैठानेवाले हैं, वे महामानव देह से मरजानेपर भी समाजके कृतज्ञ श्रद्धालु मानसमें अनंतकाल तक जीविता रहते हैं। ( सबके स्वार्थको अपना समझना सत्पुरुषता है ) यः परार्थमुपसर्पति स सत्पुरुषः ॥ २९९ ।। जो दूसरोक कल्याण करने में आगे बढता है वही सत्पुरुष है। विवरण- सचाई में ही सबका कल्याण है। सबके सामूहिक स्वार्थ ( भलाई ) में अपना स्वार्थ । भलाई-कल्याण ) देखनेवाला जो मानव दूसरों के कल्याण के लिये आगे बढता या दूसरोंकी सत्यार्थ विपत्तियों में हाथ बंटाता है, वही सत्पुरुष या महापुरुष है। स्वार्थ में जीवों को प्रवृत्ति स्वभावले होती है। परन्तु यह मनुष्यकी मज्ञानमयी स्थिति है । संसारमें अज्ञानियों का ही बहुमत होता है । परार्थ में सहयोग करना ज्ञानमयो स्थिति है । परन्तु यह दुर्लभ स्थिति है । विचारशील. ताका संसार में प्रायः अभाव रहता है। मनुष्यको जो बुरा या भला करनेकी स्वतंत्रता मिली है मनुष्य उस स्वतंत्रताका मूल्य न समझकर उसका दुरुप. योग करनेसे अविचारशील बनता है। विचारशीलतासे प्रत्यक्ष भौतिक हानि तथा अविचारशीलतासे प्रत्यक्ष भौतिक लाभकी संभावना देखकर संसार में अविचारशीलोंका ही बहुमत होता है । इस मेषमनोवत्तिसे निवृत्त रहने के लिये मनुष्य को सत्य तथा मिथ्यालाभका भेद जानना चाहिये । मनुष्य यह जाने कि जिसमें समाजका कल्याण है उसमें व्यक्तिका भी कल्याण है । जब किसी सत्यनिष्ठ व्यक्तिका कल्याण संकटमें माता तथा वह समाजसे सहायता पानेका अधिकारी बनता है, तब समाजके सत्पुरुष लोग कर्तव्य से प्रेरित होकर उसकी विपत्तिको अपनी ही विपत्ति तथा उसके
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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