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________________ यश मानवका अमर देह प्रजामें ज्ञानालोकका प्रचार होते ही राज्यव्यवस्थामें गुणी लोग सुगमतासे प्रवेश पाजाते हैं। राज्यसंस्थाका उत्कृष्ट निर्माण प्रजाकी सुमतिपूर्ण सम्म. किसे ही संभव है। राज्यसंस्थाके सनिर्मि होनेपर प्रजाकी शुभकामना राजाका नित्यसाथी बनजाती है। राजा तथा प्रजाके स्वार्थों की भिवता भयंकर राष्ट्रीय विपत्ति है। प्रजाको शुभकामना पाले ना ही राजाके पानेयोग्य सुयश है । राजाका विद्यानुरागी होना ही उसके सुयशकी योग्यता है । पाठान्तर-- विद्यया ख्यातिः । । यश मानव का अमर देह ) यशःशरीरं न विनश्यति ।। २९८॥ मनष्यका भौतिक देह ही मरता है, उसका यशारीर तो अमर महता है। विवरण-- ज्ञानी समाजकी प्रतिष्ठा लाभ करना ही यशस्वी होना है। अज्ञानी समाजकी करताली पिट वाले ना यश की कसौटी नहीं है। यशस्वीका यश हो उसका समर देह है। यशस्वीके नाशवान पांचभौतिक देहका मन्त हो जाने पर भी उसका यश अनंतकालतक समाजमें चिरस्थायी रहता है। यशस्वी मानव पार्थिव देह की मृत्युसे न मरकर संसारकी समर स्मृति में अपना स्थान बनाकर सामर होजाता है। “कीर्तिर्यस्य स जीवति' जिसको कोर्ति सत्कर्मजनित है वही जीता है । वह मरकर भी नहीं भरता। जयन्ति ते सुकृतिनो रसस्निग्धक श्वराः । नास्ति येषां यशःकाये जरामरणजं भयम् ॥ यषां वैदुष्यविभवो धर्मश्च जगतीतले । ते नरा निधनं प्राप्य विद्यन्ते नरमानस ॥ राज्यसंस्थाका यशस्वी विद्वानोंसे सुप्रभावित रहना ही राजाका यश: शरीर है । ऐसे यशःशरीरका शरीरी विद्याप्रेमी प्रजावत्सल राजा अपने नवर दहका मन्त दोजानेपर भी अपने राज्य की राजभक्त प्रजाके हृदय
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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