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________________ मत भोजनका परिणाम निश्चित सफलता देनेवाला कर्तव्यका मार्ग सुझा देना बुद्धिका ही काम है । विवरण- कार्य-संकट के समय कर्तव्याकर्तव्यका निर्णय करादेनेवाली असन्देहात्मिका बुद्धि हो बुद्धि कहाने योग्य है । संकटमें मनुष्यका बुद्धिभ्रंश न होजाना चाहिये । बुद्धिका विशेष उपयोग संकट- कालमें ही होता है । संकट ही बुद्धिको उपयोगके अवसर देते हैं । इस दृष्टिसे संकटोंका मानव-जीवन के उत्थान में महत्वपूर्ण स्थान है । इतिहास के समस्त बडे मानव संकटोंहीकी कृपा के फल थे । यदि उनके जीवन में संकट न आये होते, यदि वे यहाँ से संकट-दीन जीवन बिताकर चले गये होते, तो संसार उनके गुप्त गुणों से परिचित न होपाता और उनकी बुद्धिकी प्रखरता तथा तेजस्विता से कोई शिक्षा भी न लेपाता । संसारको महापुरुष देने तथा उनसे परिचित करानेवाले संकटोंको लाख वार धन्यवाद । संकट इस विश्वकी सबसे ऊँची देन है | संकट मानव-जीवनको उच्च बनानेवाली रामबाण महौषध है । १९७ राज्याधिकारियोंको कार्य-संकटोंके समय, संकट- कालमें भी यथार्थ बात सुझानेवाली बुद्धि रखनेवाले राष्ट्रके बुद्धिमान लोगों को निमंत्रित करके उनसे संवाद द्वारा तात्कालिक राष्ट्रीय कर्तव्य निर्धारण करना चाहिये | (मित भोजनका परिणाम ) मितभोजनं स्वास्थ्यम् ॥ २९८ ॥ परिमित भोजन स्वास्थ्यदायक होता है । विवरण - भोजन करनेवाले जानें कि वे भोजन करनेवाले नहीं हैं, किन्तु उदरकी भाग ही भोजन करनेवाली है । यह मानव-देहरूपी यंत्र भन्न जलरूप ईन्धन से चलता है। भोजन ही इस यंत्र को चलानेवाला ईन्धन है । गले से नीचे उतरते ही उस स्वादसे, जिसके लिये मनुष्य अस्वास्थ्यकर कुपथ्य भोजन करता है, मनुष्यका कोई संबंध नहीं रहजाता। इसलिये भोजन केवल स्वास्थ्य की दृष्टिसे करना चाहिये, केवल स्वादकी दृष्टिसे नहीं ।
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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