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________________ चतुर्थ परिच्छेद । ( १.४५ ) सिद्धाणं इंस को शि [ मु [१] खावरण में जाने [२], णमो प्रायरियाणं इस को अङ्गरक्षा जाने [३], णमो उवज्झायाणं इसको प्रायुध जाने (४), प्रों मो लोए सव्व साहूणं इसको मोचा [५] जाने, एसो पंच णमोक्कारो इसको पाद तल में वज्र शिला जाने [६], सव्व पावप्पणासणो इसको चारों दिशाओं में वज्रमय प्राकार जाने [9], मंगलाखं च सव्वेसिं इसको खादिर सम्बन्धी प्रङ्गारों की खातिका जाने [६], तथा पढमं हवइ मंगलं इसको माकार के ऊपर १ - " शिखा वरणे" की अपेक्षा "मुखावरणे" पाठ ही ठीक प्रतीत होता है, किन्तु पूर्वोक्त " नवकार मन्त्रसंग्रह " में " मुखाभ्यर्णे” ऐसा पाठ है वह सब से अच्छा हैं, हम ने तो उपलब्ध पुस्तक के अनुसार तल्लिखित पाठ को उसमें से उद्धृत कर लिखा है, यही व्यवस्था सर्वत्र जाननी चाहिये ॥ २- अर्थात् इस मन्त्र को बोल कर मुखपर हाथ फेरना चाहिये || ३ - अर्थात् इस मन्त्रको बोल कर शरीर पर हाथ फेरना चाहिये ॥ ८-अर्थात् उक्त मन्त्रको बोल कर ऐसा मानना चाहिये कि मानों धनुषवाण. को देखते हों॥ ५-“मोचा" शब्द शाल्मलिका वाचक है तथा शाल्मलि का नाम "स्थिरायु” भी है जिसकी आयु स्थिर हो उसे स्थिरायु कहते हैं, इस विषय में कहा गया है कि "षष्टिवर्ष सहस्राणि वने जीवति शाल्मलिः” अर्थात् शाल्मलिका वृक्षवन में साठ सहस्र वर्ष तक जीता है, इस लिये यहाँपर "मोचा" शब्द से स्थिरायुर्भाव जाना जाता है, तात्पर्य यह है कि इस मन्त्र को बोलकर अपनी आयु को स्थिर जाने, किन्तु पूर्वोक्त "नवकारमन्त्रसङ्ग्रह " पुस्तक में "मोचा" के स्थान में "मौर्वी" पाठ हैं, वह तो असन्दिग्ध ही है, वहां यह आशय जानना चाहिये कि पूर्वोक्त मन्त्र को वोल कर ऐसा विचार करना चाहिये कि मानों हम शत्रु को धनुष का चिल्ला दिखा रहे हों ॥ ६-अर्थात् इस मन्त्र को बोल कर जिस आसन पर बैठा हो उस आसन पर, चारों तरफ हाथ फेरकर मन में ऐसा विचार करे कि - "मैं वज्रशिला पर बैठा हूं; इसलिये ज़मीन में से अथवा पाताल में से मेरे लिये कोई विघ्न नहीं हो सकता है ॥ ७ - तात्पर्य यह है कि इस मन्त्र को वोल कर मन में ऐसा विचार करे कि - " मेरे चारों तरफ लोहमय कोट है," इस समय अपने आसन के आस पास चारों तरफ गोल लकीर कर लेनी चाहिये ॥ ८-तात्पर्य यह है कि इस मन्त्र को वोलकर मन में ऐसा विचार करे कि - "लोहमय कोट के पीछे चारों ओर खाई खुदी हुई है ॥ १६ Aho! Shrutgyanam
SR No.009886
Book TitleMantraraj Guna Kalpa Mahodadhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinkirtisuri, Jaydayal Sharma
PublisherJaydayal Sharma
Publication Year1920
Total Pages294
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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