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श्रीमन्त्रराजगुणकल्पमहोदधि ॥ २-उन में से प्रथम पदका कर्णिका में तथा शेष चार पदों का सृष्टि (१) से शङ खावत विधि [२] के द्वारा, इस प्रकार से सर्व [मन्त्र] का १०८ वार स्मरण करने पर शाकिनी आदि कुछ नहीं कर सकती हैं।
३-) (३) णमो अरिहंताणं इस को शिखा स्थानमें जाने [४], णमो
जितने दिनों में अपने से सवालाख जप पूर्ण हो सके उतने दिनोंतक प्रतिदिन नियमित समयपर शुद्धता पूर्वक पूर्ण जप करने से मन्त्र सिद्ध हो जाता है, तदनन्तर आवश्यकता पड़ने पर १०८ वार अथवा २१ वार ( जहां जितना लिखा हो ) जपने से कार्य सिद्ध होता है, खाने पीने में शुद्धता रखनी चाहिये, स्त्री संग नहीं करना चाहिये, जमीनपर कुश अथवा पतले वस्त्र का विछौना कर सोना चाहिये, आचार विचार को शुद्ध रखना चाहिये, एकान्त स्थानमें शुद्ध भूमि पर बैठकर मन्त्र को जपना चाहिये, प्रत्येक प्रकारके मन्त्र का जप करने से पहिले रक्षा मन्त्र का जपकर अपनी रक्षा करनी चाहिये कि जिससे कोई देव देवी तथा भूत प्रेत बाघ सांप और वृश्चिक आदि का भयङ्कर रूप धारण कर भय न दिखला सके तथा इन रूरों के द्वष्टि गत होने पर भी डरना नहीं चाहिये, क्योंकि डरने से हानि होती है, इस लिये बहुत सावधान रहना चाहिये, जप करते समय रेशम, ऊन अथवा सूत, इन में से चाहे जिस के वस्त्र हो परन्तु शुद्ध होने चाहियें, जिन घस्त्रों को पहिने हुए भोजन किया हो अथवा लघुशङ्का की हो उन वस्त्रों को पहन कर जप नहीं करना चाहिये तथा मन्त्र का जप करते २ उठना, वैठना, वा किसी के साथ बातचीत करना, इत्यादि किसी प्रकारका कोई काम नहीं करना चाहिये, इन पूर्वोक्त सूचनाओं को अच्छे प्रकार ध्यानमें रखना चाहिये ॥१-स्वभाव रचना ॥ २-शंखका जो आवर्तन होता है तद्प विधि ॥ ३-पूर्वोक्त "नवकार मन्त्र संग्रह" नामक पुस्तक में “ओं" यह पद नहीं है, इसी प्रकार “ओं णमो लोए सव्वसाहूणं मोचा” यहां पर भी वह पद नहीं है, किन्तु योग प्रकाश नामक स्वनिर्मित अन्धके आठवें प्रकाश में ७२ वें श्लोकमें श्रीहेमचन्द्राचार्य जी महाराजने कहा है कि इस लोकके फलकी इच्छा रखने वाले जनों को इस मन्त्रका प्रणव (ओम्) के सहित ध्यान करना चाहिये तथा निर्वाण पदकी इच्छा रखने वाले जनों को प्रणव से रहित इस मन्त्रका ध्यान करना चाहिये । इस नियमके अनुसार “ओम्” यह पद होना चाहिये, किञ्च इस नियम को मानकर सब ही पदोंमें “ओम्" पदको रखना चाहिये था; परन्तु वह नहीं रक्खा गया; यह विषय विचारणीय है ॥४-अर्थात् इस मन्त्रको बोलकर दहिने हाथको शिखा पर फेरे ॥
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