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________________ (१४६) श्रीमन्त्रराजगुणकल्पमहोदधि । घजमय ढक्कन जाने [९], यह महारक्षा ( विद्या ) सब उपद्रवों का नाश करती है [२] ॥ . ४-ओं णमो अरिहंताणं हां हृदयं रक्ष रक्ष हुं फुट [३] स्वाहा, ओं णमो सिद्धाणं ही शिरोरक्ष रक्ष हुं फट् स्वाहा, ओं णमो पायरियाणं ह [४] शिर्खा रक्ष रक्ष हुं फट स्वाहा ों णमो सवझायाणं हैं [१] एहि एहि भगवति वजावचं [६] वजिणि वजिणि [ 9 ] रत रक्ष हुं फुट् स्वाहा, ओं णमो लोए सव्वसाहूणं हः क्षिप्रं क्षिप्रं (८) साधय साधय वजहस्ते शूलिनि दुष्टान् रक्ष रक्ष (९) हुं फुट् स्वाहा, एसो (१०) पंच णमोक्कारो वज्रशिला प्राकारः, सव्वपावप्पणासणो अप्मयी ( अमृत. मयी (१९) ) परिखा, मंगलाणं च सवेसिं महावजाग्निप्राकारः, पढमं हवइ १-तात्पर्य यह है कि इस मन्त्रको बोलकर मनमें ऐसा विचार करे कि-"लोहमय कोट के ऊपर वज्रमय ढक्कन होरहा है,"किञ्च-पूर्वोक्त "नवकारमन्त्रसमह"में "वज्रटङ्क • 'णिकः" पेसा पाठ है, वहां यह अर्थ जानना चाहिये कि-सङ्कल्प से जो अपने आस पास वज्रमय कोट माना है, उस के मानो टकोर मारते हों," भावार्थ यह है कि-"उ. पद्रव करने वालो ! चले जाओ, क्योंकि मैं वज्रमय कोट में वज्रशिला पर अपनी रक्षा कर निर्भय होकर बैठा हूँ” ॥ २-तात्पर्य यह है कि--यह सर्वोपद्रवनिवारक रक्षा मन्त्र है ॥ ३-पूर्वोक्त “नवकारमन्त्रपङ्ग्रह” नामक पुस्तक में इस मन्त्र में “फुट” इस पद के स्थान में सर्वत्र “फट" ऐसा पाठ है और यही ( फट) पाठ ठीक भी प्रतीत होता है क्योंकि कोशादि ग्रन्थों में "फट्” शब्द ही अस्त्रबीज प्रसिद्ध है किञ्च "फुट” शब्द तो कोशों में मिलता भी नहीं है॥ ४-पूर्वोक्त "नवकारमन्त्रसङ्ग्रह" पुस्तक में "ह" इस पद के स्थान में “हो” ऐसा पाठ है, वह ठीक प्रतीत नहीं होता है; क्योंकि "ह्रीं” पद पहिले आचुका है ॥ ५-पूर्वोक्त पुस्तक में "ह" के स्थान में है, पाठ है, वह विचारणीय है ॥ ६-पूर्वोक्त पुस्तक में “वज्रकवचा" पाठ है ॥ ७पूर्वोक्त पुस्तक में “वज्रिणि” यह एकवार ही पाठ है ॥ ८-पूर्वोक्त पुस्तक में “क्षिप्रं" ऐसा एक ही वार पाठ है ॥ ६-रक्षण शब्द से यहां पर निग्रह पूर्वक धारण को जानना चाहिये, इस लिये यह अर्थ जानना चाहिये कि-"दुष्टों का निग्रह पूर्वक धा. रण करो, धारण करो”॥ १०-पूर्वोक्त पुस्तक में “एसो” यहां से लेकर आगे का पाठ ही नहीं है ॥ ११-“अमृतमयी” यही पाठ टोक प्रतीत होता है। Aho! Shrutgyanam
SR No.009886
Book TitleMantraraj Guna Kalpa Mahodadhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinkirtisuri, Jaydayal Sharma
PublisherJaydayal Sharma
Publication Year1920
Total Pages294
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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