SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 16
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पृटसे पृष्ठतक १०४ (८) श्रीमन्त्रराजगुणकल्पमहोदधि ॥ विषय उक्त फल का हेतु ... ... ... ... ... १०२ इन्द्र और वरुण वायुके प्रवेश और निर्गमके द्वारा शुभाशुभफल १०२ पवन और दहन वायुके प्रवेश और निर्गमके द्वारा शुभाशुभफल १०२ इड़ा आदि नाड़ियों का स्थानादि. उक्त नाड़ियों का कार्य ... ... .... कार्य विशेष में नाड़ी ग्रहण ... ... ... ... १०२ पक्षभेद से नाड़ियों की उत्तमता.. ... ... ... १०२ वायु के उदय व अस्त में फल ... ... पक्ष के दिनों में वायु का उद्य, अस्त तथा संक्रमण वायु के अन्यथा गमन में भावी मृत्यु आदि का ज्ञान वायु की गति के विज्ञान का उपाय (पीतादि विन्दु) चलती हुई नाड़ी के परिवर्तन का उपाय .. ... चन्द्र क्षेत्र तथा सूर्य क्षेत्र ... ... ... ... १०५ वायु के सञ्चार का दुर्मीयत्त्व ... ... नाडी विशुद्धि-परिज्ञान-फल ... ... ... ... १०५ नाड़ी शुद्धि की प्राप्ति का उपाय... ... नाड़ी शुद्धि-प्राप्ति-फल... ... ... ... ... वायु का नाड़ी में स्थिति-काल ... ... स्वस्थ मनुष्य में एक दिन रात में प्राणवायु के आगम निर्गम की संख्या ... ... ... वायु संक्रमण ज्ञान की आवश्यकता ... प्राणायाम के द्वारा संक्रमण तथा संचार की विधि पर शरीर प्रवेशाप्रवेश विधि ... ... पर शरीर प्रयेश-निषेध... ... ... मोक्ष मार्ग की असिद्धि का कारण ... धर्मध्यान के लिये मनका निश्चल करना... ध्यान के स्थान... ... ... ... ... ... १०८ मन की स्थिरता का फल ... ... ... ... १०८ ध्यानाभिलाषी पुरुष के लिये ध्याता आदि सामिग्रो १०६ " १०६ १०६ १०७ १०८ Aho! Shrutgyanam
SR No.009886
Book TitleMantraraj Guna Kalpa Mahodadhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinkirtisuri, Jaydayal Sharma
PublisherJaydayal Sharma
Publication Year1920
Total Pages294
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy