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________________ ( ६८ ) श्रीमन्त्र राज गुणकल्पमहोदधि ॥ नाम निवासका है, उसका " प्रतान अर्थात् लाघव है, निर्धन गृहका लाघत्र होता ही है, "तान” नाम विस्तारका है तथा “ अतान” नाम लाघव का है, म और म, ये दो निषेध प्रकृत अर्थको कहते हैं, ऊ शब्द पूरण अर्थ में है ॥ १८ - " त" नाम तस्कर (१) का है, उसका “ प्रा” अर्थात् अच्छे प्रकार "न" अर्थात् बन्धन होता है, वह ( वन्धन ) कैसा है कि - " नमोत्परिघ" है “नमत्” अर्थात् पदसे भी द्वार आदि में मिला हुआ, “उत्” अर्थात् प्रबल " परिघ,, अर्थात् अर्गला जिसमें है, वही चौर का बन्धन होता है ॥ १९ – “अरि” अर्थात् प्राप्त होता है हकार जहांपर, इस कथन से सकार का ग्रहण होता है, उस (सकार) से “अन्तानम्" यह पद जोड़ दिया जाता है, तब " सन्तानम्" ऐसा बन जाता है, इसलिये सन्तान और “मा" अर्थात् लक्ष्मी ये दोनों दुर्गतिपात ( २ ) से 'ऊ' अर्थात् रक्षण नहींकर सकते हैं ॥ २० –“ अर्हन्त” सामान्य केवलियों को कहते हैं, उनको नमस्कार हो ॥ २९ - "ओ" यह पद सम्बोधन अर्थ में है - "न" ! ' अर्थात् बुद्धिको प्रर्हत” अर्थात् प्राप्त करनेवाले अर्थात् बुद्धिनिधान मन्त्रीको “अ” प्रर्थात् जानो ( अ धातु सातत्यगमन अर्थ में है तथा गत्यर्थ धातु ज्ञानार्थक होते (३) हैं ) (स्वराणां स्वराः इस सूत्र से आकार हो जाता है ) ( गम् शब्द वाक्याल कार अर्थ में है ) ॥ २२ –“अर्हत्” अर्थात् पूज्य माता पिता आदि (४) को नमस्कार हो ॥ २३ - - " अर्हत्” अर्थात् स्तुति के योग्य सत्पुरुषों को नमस्कार हो (५) ॥ २४ – “न” अर्थात् ज्ञान को “ अर्हत्” अर्थात् प्राप्त हुए श्रुतकेवलियों को “ ” अर्थात् देखे ॥ २५ – “न” ज्ञान को कहते हैं, उसका "मा” अर्थात् प्रामाशय (६) “ऊ” अर्थात् धारण, उसके “अरिह" अर्थात् योग्य, ज्ञानके प्रामाण्य के वक्ता मनुष्य को तुम "अण, अर्थात् कहो, (अण रण इत्यादि दण्डक धातु है ) ता प्रर्थात् तावत् शब्द प्रक्रम (१) अर्थ में है, अन्तमें अनुस्वार प्राकृत के कारण हो जाता है ) १-चोर ॥ २- दुर्गति में गिरने ॥ ३-जो धातु गति अर्थ वाले हैं, उन सब का ज्ञान अर्थ भी माना जाता है ॥ ४-आदि शब्द से आचार्य और गुरु आदि को जानना चाहिये ॥ ५- मूल में ( संस्कृत में ) यहां पर कुछ पाठ सन्दिग्ध है ॥ ६-प्रमाणत्व, प्रमाणपन ॥ ७-क्रम ॥ Aho! Shrutgyanam
SR No.009886
Book TitleMantraraj Guna Kalpa Mahodadhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinkirtisuri, Jaydayal Sharma
PublisherJaydayal Sharma
Publication Year1920
Total Pages294
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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