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________________ द्वितीय परिच्छेद ॥ ( ६६ ) २६- “अ” अर्थात् प्राप्त किया है अन्त को जिन्होंने; इस प्रकार के हैं " प्रणति” अर्थात् प्राप्त किया है अनन्तानुबन्धवाले जिसके उसको अर्थात् क्षायिक (१) सम्यक्त्व वाले सम्यग् दृष्टि पुरुषको नमस्कार हो, पद के एक देश में समुदाय का उपचार होता है ) ॥ २७ – “त्राण” अर्थात् भोजन भाजन और मण्डन योग्य जो वस्तु है उसको नमन करो ( शिक् प्रत्ययका अर्थ अन्तर्भूत है, इसलिये यह अर्थ जाना चाहिये कि मी करे ) अर्थात् सुसज्जित ( २ ), करोयह भोजनकर्ताका वचन, है वह (वचन) कैसा है कि "उत, अर्थात् सम्बद्ध (३) है लिह अर्थात् भोजन जिनसे ! २८–“ताण ं अर्थात् तृणसमूह है, वह कैसा है कि - "नमं" अर्थात् नमत् कुटीर प्राय (8) जो "प्रो" अर्थात् घर है; उसके योग्य है; क्योंकि घर तृणों से प्राच्छादित (५) किया जाता है ॥ २९- तृण है, कैसा है कि मोदारिह है "मोद” नाम हर्षका है; तत्प्रधा न (६) जो अरि (9) हैं उनका जो नाश करता है ( उसे मोदारिह कहते हैं ) "न, शब्द निषेध अर्थ में है, तात्पर्य यह है कि वे वैरी लोग मुखमें तृणको डाल कर जीते हैं ॥ ३० - "ग" है ( हन्त यह शब्द खेद अर्थ में है ) वह कैसा है कि "नमोदारि, है "न" नाम बुद्धिका है तथा "मोद" नाम हर्षका है, उसका “अरि” अर्थात् वैरीरूप है तात्पर्य यह है कि ऋण के होनेपर बुद्धि और हर्ष नष्ट हो जाते हैं ॥ ३१ – “नमाश्ररि हंताणम्” प्ररिभ अर्थात् रिपुनक्षत्र में अत अर्थात् गमन्त्र जिस का होता है (श्रत धातु सातत्यगमन अर्थ में है ) इस प्रकारका म अर्थात् चन्द्रमा न अर्थात् वन्धन अर्थात् विग्रह (८) को णम् अर्थात् निष्फल कर देता है, (कार निष्फल तथां प्रकट अर्थ में कहा गया है, करोति क्रिया का अध्याहार हो जाता है प्ररि हन्त शब्द के आगे प्रथमा के एक वचनका लु हो जाता है, क्योंकि " व्यत्ययेोऽप्यासाम् इस वचन से अपभ्रंश की अपेक्षा से " स्वंजस् शसां लुक् इस सूत्र से लुक् हो जाता है, इसी प्रकार अन्यत्र भी जानना चाहिये ) ॥ ވ " १-क्षय जन्य ॥ २- तैयार ॥ ३- सम्बन्धयुक्त, उचित ॥ ४ - कुटी के समान ॥ ५- आवृत, ढका हुआ ॥ ६-मोद प्रधान, मोद युक्त ॥ ७- शत्रु ॥ ८- कलह, झगड़ा ॥ Aho ! Shrutgyanam
SR No.009886
Book TitleMantraraj Guna Kalpa Mahodadhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinkirtisuri, Jaydayal Sharma
PublisherJaydayal Sharma
Publication Year1920
Total Pages294
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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