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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३ कृपालु गुरुदेव ___ आचार्यदेव उपाश्रय में चले गये | राजा राजमहल में पहुँचा। स्नान-भोजन वगैरह से निपटकर उसने पाटन के राज ज्योतिषियों को बुलवाया। ज्योतिषी आये। राजा ने सभी का स्वागत किया । ज्योतिषियों ने आसन ग्रहण किये। राजा ने प्रश्न किया : __ आप सभी ज्योतिष शास्त्र में विशारद हो, आपके शास्त्रों के मुताबिक मेरे प्रश्न का सच-सच जवाब देना । 'मेरे भाग्य में पुत्र-प्राप्ति का योग है या नहीं?' यही मेरा एक सवाल है तुम सबसे!' ___ ज्योतिषियों ने तुरन्त प्रश्नकुण्डली रखकर उसमें से राजा के प्रश्न का जवाब ढूँढ़ने की कोशिश की। परस्पर सोच विचार करके जवाब निश्चित किया और महाराजा से कहा : 'महाराजा, आपके भाग्य में पुत्र-प्राप्ति का योग नहीं है!' जो जवाब देवी अंबिका ने दिया था... वही जवाब ज्योतिषियों ने दिया । राजा निराश हो गया। ज्योतिषियों का उत्तम वस्त्रों से और सोनामुहरों से स्वागत करके उन्हें बिदाई दी। राजा सिद्धराज ने रात्रि के समय रानी से कहा : "देवी, ज्योतिषी भी उनके ज्योतिष शास्त्र के अनुसार पुत्र-प्राप्ति की मना करते हैं। देवी अंबिका ने भी गुरुदेव को ना कही थी।' रानी ने कहा : "तब तो अब धर्मकार्य में मन को लगाना चाहिए। अपने नसीब में पुत्र का सुख है ही नहीं... यों समझकर उस बात का स्वीकार कर लेना चाहिए।' 'देवी, इस प्रकार निराश होकर बैठे रहने से कार्यसिद्धि होगी नहीं, हमें हमारी कोशिश चालू रखनी चाहिए।' ‘पर अब और कौन सा उपाय बचा है, जिसके लिए आप सोच रहे हो?' 'हम दोनों, यहाँ से पैदल चलकर देवपत्तन की यात्रा करें। वहाँ पर सोमनाथ महादेव की पूजा करें और खाना-पीना छोड़ कर, उनके सामने बैठ जाएँ, उनका ध्यान करें। वे भोले महादेव अवश्य प्रसन्न होंगे हम पर, और हमारी इच्छा पूर्ण करेंगे।' रानी ने कहा : 'ठीक है... मैं आपके साथ आऊँगी! आपकी जो इच्छा होगी, वही करेंगे!' For Private And Personal Use Only
SR No.009634
Book TitleKalikal Sarvagya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages171
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size3 MB
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