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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कृपालु गुरुदेव ४२ गुरुदेव ने पूछा : 'तब फिर सिद्धराज की मृत्यु के पश्चात् गुजरात का राजा कौन होगा?' देवी ने कहा : त्रिभुवनपाल का पुत्र कुमारपाल! वह महान शूरवीर होगा। पराक्रमी होगा। वह राजा होकर जैन धर्म को काफी फैलाएगा। अहिंसा धर्म का प्रसार करेगा।' इतना कहकर देवी अदृश्य हो गई। आचार्यदेव अपने स्थान पर आये । तीन दिन के उपवास का पारणा किया। राजा सिद्धराज काफी उत्सुक था परिणाम जानने के लिए। वह गुरुदेव के पास आया। गुरुदेव को वंदना की। उनके चरणों में विनयपूर्वक बैठा। गुरुदेव ने कहा : 'राजेश्वर, तुम्हारे भाग्य में पुत्र का योग नहीं है-ऐसा देवी ने कहा । तुम्हारे बाद गुजरात का राजा कुमारपाल होगा।' 'कौन कुमारपाल?' सिद्धराज ने चकित् होकर पूछा। 'त्रिभुवनपाल का पुत्र कुमारपाल!' गुरुदेव ने देवी का कथन बताया। 'ओह्... त्रिभुवनपाल का बेटा?' राजा सिद्धराज का मन खिन्न हो उठा। 'राजन, खेद न करें! पूर्वजन्म में तुम्हारे जीवात्मा ने जो पाप कर्म बाँधे हैं - वे अंतराय बनकर खड़े हैं तुम्हारे पुत्र सुख की राह में! इसलिए पुत्र-प्राप्ति शक्य नहीं है। कोई उपाय कारगर नहीं होगा। इसलिए अफसोस करना छोड़ दें! जो संभव नहीं है, उसकी इच्छा करने से क्या? उसके लिए अफसोस की आग में जलने से क्या?' आचार्यदेव ने सिद्धराज के अशांत मन को शांति देने के लिए उपदेश दिया। परन्तु पुत्र-प्राप्ति की तीव्र इच्छा के कारण पैदा हुए दु:ख के सागर में राजा डूब गया था। उनका दुःख दूर हुआ नहीं कि हलका भी हुआ नहीं! ००० आचार्यदेव के साथ राजा सपरिवार वापस पाटन लौटा। पाटन की प्रजा ने भव्य स्वागत किया। राजा ने गरीबों को दान दिया। नगर के सभी मंदिरों को सजाया गया। प्रजा ने महोत्सव मनाया। परन्तु राजा का अशांत एवं व्याकुल मन शान्त नहीं था। उसके मन में भयंकर अफरातफरी मची हुई थी। For Private And Personal Use Only
SR No.009634
Book TitleKalikal Sarvagya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages171
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size3 MB
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