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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४ कृपालु गुरुदेव राजा सिद्धराज ने उन्हीं विचारों में रात गुजार दी। कुछ दिन बीत गये और उसने गुप्त भेष में देवपत्तन जाने का तय किया। यह बात राजा ने आचार्यदेव हेमचन्द्रसूरिजी से भी कही नहीं! उसे डर था 'शायद गुरुदेव इन्कार कर दें तो? उनकी इच्छा के विपरीत तो जा नहीं सकते!' एक दिन तड़के ही राजा-रानी ने पैदल प्रयाण चालू कर दिया! रास्ते में जो मिलता है... खा लेते हैं! कुएं का पानी पीकर प्यास बुझा लेते हैं! रास्ते में आती धर्मशाला-सराय में विश्राम करते हैं और अपने गंतव्य की दिशा में आगे बढ़ते रहते हैं। अनेक कष्टों को सहते हैं! यों करते हुए एक दिन देवपत्तन पहुँच जाते हैं। स्नान बगैरह से निपट कर राजा-रानी ने सोमनाथ महादेव की पूजा की। स्तुति की। प्रार्थना की। अन्न-जल त्याग कर दोनों महादेव के समक्ष ध्यान लगा कर बैठ गये। तीन दिन व्यतीत हो गये । राजा-रानी जरा भी डिगे नहीं। वे समझते थे कि 'दुःख सहे बगैर देव दर्शन देंगे नहीं!' आखिर सोमनाथ महादेव, राजा-रानी के समक्ष प्रगट हुए। राजा-रानी ने खड़े होकर महादेव के चरणों में साष्टांग प्रणाम किये। महादेव ने पूछा : 'सिद्धराज, मुझे क्यों याद किया?' __ 'ओ भगवान, मैं आपका भक्त हूँ| अभी तक मेरे घर के आँगन में पुत्र का पालना लगा नहीं है...। मुझे पुत्र की प्राप्ति नहीं हुई है... प्रभु मुझे एक पुत्र का दान करें...| ताकि मेरा वंश चालू रहे!' महादेव ने कहा : 'सिद्धराज, तेरी किस्मत में संतान का सुख है नहीं! तेरे बाद तेरी राजगद्दी पर महापराक्रमी कुमारपाल आयेगा... यही नियति है।' सिद्धराज ने तनिक कड़वाहट से कहा : 'नाथ! सारी दुनिया आपको सभी के मनोरथ पूरे करने वाले देव के रूप में जानती है... मानती है, और आप मुझे एक पुत्र भी नहीं दे सकते! मेरी इतनी मुराद भी पूरी नहीं कर सकते! फिर आपकी प्रसिद्धि वह सारी बातें सच्ची हैं या झूठी?' For Private And Personal Use Only
SR No.009634
Book TitleKalikal Sarvagya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages171
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size3 MB
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