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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra कृपालु गुरुदेव www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१ ८. कृपालु गुरुदेव कोड़ीनार की अम्बिकादेवी यानी हाजराहजूर देवी! उसके प्रभावों की चर्चा सौराष्ट्र और गुजरात तक फैली हुई थी ! दुखियों के दुःखों को दूर करके सुख के फूल खिलानेवाली देवी के दर्शन करने के लिये लोग दूर-दूर से कोड़ीनार आते थे! कइयों के अरमान पूरे होते ! कइयों की उम्मीदों के बगीचे में बहार छा जाती! आचार्यदेव के साथ राजा सिद्धराज का काफिला कोड़ीनार पहुँच गया । राजा ने देवी के दर्शन किये। पूजन किया । राजा ने आचार्यदेव से अति नम्रता के साथ विनति की : 'गुरुदेव, मेरे पास सोने-चाँदी के भण्डार भरे हुए हैं। हीरे-मोती के खजाने भरे पड़े हैं। हाथी-घोड़े और रथ भी बेशुमार हैं, और मेरा राज्य भी बड़ा विशाल है, फिर भी प्रभु! मैं और रानी दोनों काफी दुःखी हैं! हमारे मन में संताप की आग धधक रही है। कारण आपसे छिपा नहीं है! हमें संतान की कमी है। इस कमी ने सारे भरे-पूरे राज्य को खाली-खाली बना रखा है। गुरुदेव... मेरी आपसे एक नम्र प्रार्थना है : आप देवी अंबिका की आराधना करें और देवी से पूछें कि मुझे पुत्र मिलेगा भी या नहीं? और मेरे बाद गुजरात का राज्य किसके हाथों में जाएगा?' आचार्यदेव ने गंभीरता से कहा : 'ठीक है, मैं देवी से पूछ लूँगा ।' आचार्यदेव ने तीन उपवास किये। देवी के मंदिर में बैठ गये । ध्यान में निमग्न होकर अपनी समग्रता को देवी अंबिका के स्मरण में केन्द्रित कर दी। तीसरे दिन मध्यरात्री के समय देवी अंबिका, गुरुदेव के सामने प्रगट हुई और गुरुदेव को दोनों हाथ जोड़कर वंदना की । 'गुरुदेव, मुझे किसलिए याद किया ?' 'गुजरात के राजा सिद्धराज जयसिंह के भाग्य में पुत्र प्राप्ति का योग है या नहीं? यह पूछने के लिये आपको याद किया है । ' For Private And Personal Use Only देवी ने कहा : 'राजा के पूर्वजन्म के पापकर्मों के कारण उसे पुत्र की प्राप्ति नहीं होगी । '
SR No.009634
Book TitleKalikal Sarvagya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages171
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size3 MB
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