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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra जिनमंदिरों का निर्माण www.kobatirth.org १६. जिनमंदिरों का निर्माण Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९३ गुरुदेव हेमचन्द्रसूरिजी ने राजा कुमारपाल से एक दिन कहा : 'राजन्, प्राणीमात्र को सुख - कल्याण एवं मुक्ति का मार्ग बतानेवाले जिनेश्वर भगवंतों के मंदिर निर्मित करके इस मनुष्य जीवन का परम कर्तव्य पूरा करना चाहिए। इतने भव्य...आलीशान... कलात्मक और रमणीय जिनमंदिरों का निर्माण करो कि पहली नजर में देखते ही लोग उन मंदिरों में जाने के लिए लालायि हो उठें! सुन्दर नयनरम्य मूर्तिओं का सर्जन करो ताकि उन प्रतिमाओं के दर्शन करने पर लोगों के मन प्रसन्नता का अनुभव करें, शांति महसूस करें और आनन्द से प्रफुल्ल हो उठें ।' आचार्यश्री ने बड़ा ही समयोचित उपदेश दिया। ऐसे वक्त में राजा के सामने यह प्रस्ताव रखा... जबकि राजा अन्य किसी कार्य में व्यस्त नहीं था। गुरुदेव ने कार्यदिशा बता दी। राजा को कार्य अच्छा भी लगा । राजा ने मंदिर निर्माण करनेवाले शिल्पशास्त्र के निष्णातों को बुलाकर कहा : 'पाटण शहर के मध्य में एक सुन्दर मंदिर का निर्माण करना है, और उसमें भगवान नेमनाथ की मनोहारी मूर्ति बिराजमान करना हैं ।' मुख्य शिल्पी ने कहा : 'महाराजा, आपके मन को भा जाए... आपकी आँखों को लुभा दे... वैसे जिनालय का निर्माण हम करेंगे।' 'मुझे पसंद आये, इतना ही काफी नहीं होगा... मेरे गुरुदेव को भी पसंद आना चाहिए। उनके मन को भी भाना चाहिए। तुम्हें पता है कि गुरुदेव शिल्पकला में कितनी रुचि रखते हैं? यदि तुम शिल्पशास्त्र के नियमों के मुताबिक निर्माण करोगे तो ही गुरुदेव उसे पसंद करेंगे। हेमचन्द्रसूरिजी तो साक्षात् सरस्वती पुत्र हैं । ' For Private And Personal Use Only 'जी हाँ, हमें पता है, उन महान् ज्ञानी गुरुदेव की ज्ञानोपासना के बारे में । वे शिल्पशास्त्र के भी निष्णात हैं । वे हमारी तारीफ़ करें, हमें धन्यवाद दें, ऐसे जिनमंदिर का निर्माण कर देंगे ।'
SR No.009634
Book TitleKalikal Sarvagya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages171
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size3 MB
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