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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिनमंदिरों का निर्माण ९४ राजा ने प्रसन्न होकर उसी वक्त अपनी ओर से शिल्पियों को हजारों रुपयें दान दिये। उन्हें प्रोत्साहित किया। ___ राजा ने मंदिर-निर्माण की पूरी जिम्मेदारी वाग्भट्ट मंत्री को सुपुर्द कर दी। कोषाध्यक्ष को बुलाकर सूचना दी : 'मंदिर के कार्य के लिए वाग्भट्ट मंत्री को जितने रुपये चाहिए उतने दे दिये जाएं। और फिर क्या देरी थी? अतिशीघ्र पूरी तैयारी के साथ मंदिरों के निर्माण का कार्य शुरू हो गया। नेमनाथ भगवान की सौ इंच की ऊँचाईवाली प्रतिमा बनाने का कार्य भी प्रारम्भ कर दिया गया। इधर वर्ष भर में आलीशान, उत्तुंग जिनमंदिर निर्मित हो गया। उधर सुन्दर, मनभावन मूर्ति भी तैयार हो गई। गुरुदेव हेमचन्द्रसूरिजी ने मंदिर में विधिविधान के साथ मूर्ति की प्रतिष्ठा करवाई। राजा ने उस मंदिर का नाम रखा 'त्रिभुवनपाल चैत्य' | राजा कुमारपाल के पिता का नाम था त्रिभुवननाथ । बड़ा ही उपयुक्त और सूचक नाम रखा गया था। परमात्मा भी तीन भुवन-तीन जगत के पालक माने जाते हैं, उनका चैत्य... उनका मंदिर और त्रिभुवनपाल के रूप में पिता का नाम भी साथ जुड़ गया । प्रथम जिनालय पिता की पुण्य स्मृति का प्रतीक बन गया । प्रजा भी मुक्त मन से राजा की पितृभक्ति की प्रशंसा करने लगी। ० ० ० एक दिन राजा ने गुरुदेव के समक्ष अपने पापों का प्रकाशन करते हुए कहा : 'गुरुदेव! मैंने अपने बत्तीस दाँतों से कई बरसों तक मांसाहार किया है। अभक्ष्य पदार्थ खाये हैं। बहुत पाप किये हैं। प्रभो, आप मुझे प्रायश्चित दीजिए।' गुरुदेव ने कहा : 'कुमारपाल, पापों से मुक्त होने की तुम्हारी भावना प्रशंसनीय है...। तुम्हें बत्तीस जिनालयों का निर्माण करना चाहिए क्योंकि तुमने बत्तीस दाँतों से मांस चबाया है...।' राजा ने गुरुदेव के चरणों में मस्तक रखते हुए कहा : 'तहत्ति गुरुदेव । आपका दिया हुआ प्रायश्चित मैं स्वीकार करता हूँ| बड़ी शीघ्रता से ३२ जिनमंदिरों का निर्माण करवाऊँगा। पर ३२ मंदिर कैसे बनाने... इसका पूरा मार्गदर्शन देने की कृपा भी आपको ही करनी होगी।' For Private And Personal Use Only
SR No.009634
Book TitleKalikal Sarvagya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages171
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size3 MB
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