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________________ [ 8 ] अनभिज्ञ नहीं हो सकते । इसके अतिरिक्त कवि द्वारा लिखे हुए वश-वर्णन के पाँचवें श्लोक में स्पष्ट लिखा हुआ है कि दत्तक के पुत्र माघ ने सुकवि-कीर्ति को प्राप्त करने की अभिलाषा से 'शिशुपालवध' नामक काव्य की रचना की है, जिसमें श्रीकृष्णचरित वर्णित है और प्रतिसर्ग की समाप्ति पर 'श्री' अथवा उसका पर्यायवाची अन्य कोई शब्द अवश्य दिया गया है । यहाँ ध्यातव्य यह है कि जिस कवि ने १९वें सर्ग के अन्तिम श्लोक ( क्र० १२० ) चक्रबन्ध' - में किसी रूप में बड़ी ही निपुणता से - 'माघकाव्यमिदम्', शिशुपालवधः" - तक अंकित कर दिया है तो वह अपने वंश का वर्णन भी सूक्ष्म रूप से अकित क्यों नहीं करेगा ? यश का अभिलाष रखनेवाला कवि बहुज्ञता की प्रतिद्वन्द्रिता के युग में निश्चय ही अपने वंश का वर्णन करके युगों तक अपनी प्रसिद्धि फैलाने का कार्य करेगा । इतना सब कुछ स्पष्ट होते हुए भी विद्वानों के सम्मुख कविवर माघ के जीवन के विषय में उलझनें हैं । महाकवि माघ का जीवनवृत्त और समय : - ___ कविवर माघ का जन्म राजस्थान की इतिहासप्रसिद्ध नगरी 'भीनमाल' में राजा वर्मलात के मन्त्री सुप्रसिद्ध शाकद्विपीय ब्राह्मण सुप्रभदेव के पुत्र कुमुदपण्डित ( दत्तक ) की धर्मपत्नी ब्राह्मी के गर्भ से माघ की पूर्णिमा को हुआ था । कहा जाता है कि इनके जन्म समय की कुण्डली को देखकर ज्योतिषी ने कहा था कि यह बालक उद्भट विद्वान, अत्यन्त विनीत, दयालु, दानी और वैभव सम्पन होगा । किन्तु जीवन की अन्तिम अवस्था में यह निर्धन हो जायगा । यह बालक पूर्ण आयु प्राप्त करके पैरों पर सूजन आते ही दिवंगत हो जायगा । ज्योतिषी की भविष्य वाणी पर विश्वास करके उनके पिता कुमुद पण्डित-दत्तक ने जो एक श्रेष्ठी ( श्रेष्ठं धनादिकम् अस्ति यस्य, श्रेष्ठ इनि ) ( धनी ) थे, प्रभूत धनरत्नादि की सम्पत्ति को भूमि में घड़ों में भर कर गाड़ दिया था और शेष बचा हुआ धन माघ को दे दिया था । कहा जाता है कि 'शिशुपालवध' काव्य के कुछ भाग की रचना इन्होंने परदेश में रहते हुए की थी और शेष भाग की रचना वृद्धावस्था में घर पर रहकर ही की । अन्तिम अवस्था में ये अत्यधिक दरिद्रावस्था में थे । 'भोज-प्रबन्ध' में उनकी पत्नी प्रलाप करती हुई कहती है कि जिसके द्वार पर एक दिन राजा आश्रय के लिए ठहरा करते थे, आज वही व्यक्ति दाने दाने के लिए तरस रहा है । क्षेमेन्द्रकृत 'औचित्य विचार चर्चा' में पं० महाकवि माघ का अधोलिखित पद्य माघ की उक्त दशा का निदर्शक है - बुभुक्षितैर्व्याकरणं न भुज्यते न पीयते काव्यरस: पिपासितैः । न विद्यया केनचिदुद्धृतं कुलं हिरण्यमेवार्जयनिष्फलाः क्रियाः ॥ १. श्रीशब्दरम्यकृतसर्गसमाप्तिलक्ष्म लक्ष्मीपतेश्चरितकीर्तनमात्रचारु । तस्यात्मजः सुकविकीर्तिदुराशयाऽदः काव्यं व्यधत्त शिशुपालवधाभिधानम् ।। ५ ।।
SR No.009569
Book TitleShishupal vadha Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajanan Shastri Musalgavkar
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages231
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size63 MB
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