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________________ भूमिका 'शिशुपालवध' महाकाव्य के रचयिता महाकवि 'माघ' डाँ० केर्न ने आश्चर्य के साथ लिखा कि संस्कृत के ग्रन्थकारों को अपना परिचय छिपाने की विचित्र आदत है । सामान्यतः वे ( प्राचीन संस्कृत ग्रंथकार ) अपने विषय में या अपने समय के विषय में कुछ भी संकेत स्वकृत ग्रंथ में नहीं देते । संभवतः उन्होंने दुर्वार काल - स्रोत्र के सम्मुख स्थिर रहने में अक्षम इस कार्य को एक बालिश प्रयत्न जैसा समझा और वे इसीलिए प्राय: मौन ही रहे हैं । जो कुछ भी रहा हो, किन्तु हमारे कविवर 'माघ' इस सामान्य नियम के लिये अपवाद स्वरूप ही हैं । महाकवि 'माघ' ने काव्य के २० वें सर्ग के अन्त में प्रशस्ति के रूप में लिखे हुए पाँच श्लोकों में अपना स्वल्पपरिचय अंकित कर दिया है जिसके सहारे तथा काव्य यत्र-तत्र निबद्ध संकेतों से तथा अन्य प्रमाणों के आधार पर कविवर माघ के जीवन की रूपरेखा अर्थात् उनका जन्म समय, जन्मस्थान, तथा उनके राजाश्रय को जाना जा सकता है । प्रसिद्ध टीकाकार मल्लिनाथ ने प्रशस्ति रूप में लिखे इन पाँच श्लोकों की व्याख्या नहीं की है । केवल वल्लभदेव कृत व्याख्या ही हमें देखने को मिलती है । इसी प्रकार १५ वें सर्ग में प्रथम ३९ श्लोक के पश्चात् द्र्यर्थक ३४ श्लोक रखे गये हैं । पश्चात् ४० वाँ श्लोक है, यहीं से मल्लिनाथ ने व्याख्या की है। अतः यह समझा जाता है कि जिस तरह उन ३४ श्लोकों को प्रक्षिप्त मानकर मल्लिनाथ ने उनकी व्याख्या नहीं की है, उसी प्रकार प्रशस्ति के पाँच श्लोकों को भी प्रक्षिप्त मानकर मल्लिनाथ ने व्याख्या नहीं की है । किन्तु मल्लिनाथ के पूर्ववर्ती टीकाकार वल्लभदेव ने उन ३४ श्लोकों की तथा कविवंश वर्णन के पाँच श्लोकों की टीका लिखी है । अतः वल्लभदेव मल्लिनाथ से पूर्ववर्ती होने के कारण यह विश्वास किया जाता है कि कविवंश वर्णन के आदि में जो - "अधुना कविमाघो निजवंशवर्णनं चिकीर्षुराह"- लिखा है, वह सत्य है अर्थात् अन्य द्वारा लिखा हुआ यह कविवंश वर्णन नहीं है । 'कविवंशवर्णन के पाँच श्लोक प्रक्षिप्त हैं" वह कहना केवल कपोल कल्पना है । क्योंकि प्रभाकरचरितकार ने स्वयं यह लिखा है कि मैंने कविवर माघ के विषय — - - में जो कुछ लिखा है, वह सब जनश्रुति के आधार पर है। निश्चित ही जनश्रुतियाँ एकदम निराधार नहीं होतीं 'नह्यमूला जनश्रुति: ' - उनमें सत्याश अवश्य रहता । इस दृष्टि से ९वीं या १०वीं शती के विद्वान् माघ के वंशीय व्यक्तियों - पिता, पितामह प्रपितामह तथा कवि का नाम, उसका निवासग्राम, आदि से अधिक दूरवर्ती न होने के कारण,
SR No.009569
Book TitleShishupal vadha Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajanan Shastri Musalgavkar
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages231
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size63 MB
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