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________________ प्रथमः सर्ग: परनिपातः पारस्करादित्वात् सुडागमश्च । परे शत्रवः स्फुरन्तो प्रसरन्तो धनुनिस्वनौ चापघोषौ इन्द्रचापगजिते-यस्य यत्र वा तथोक्तः स नल एव घन: मेघः तस्थ आशुगानां शराणाम् अन्यत्र आशुगा वेगगामिनी यद्वा आशुगेन वेगगामिना वायुना या प्रगल्भा महती वृष्टिः 'आशुगी वायुविशिखावि' स्यमरः । तथा व्ययितस्य निर्वापितस्य विपूर्वादयते: कर्मणि क्तः। निजस्य तेजःशिखिनः प्रतापाग्नेः अङ्गारमिव अयशः अपकीति वितेनुः विस्तारितवन्तः । पराजिता इति भावः ! अत्र रूपकोत्प्रेक्षयोरङ्गाङ्गिभावः सङ्करः ॥ ९ ॥ __ अन्वयः-परश्शताः परे संगरे निजस्य स्फुरद्धनुनिस्वनतद्घनांशुगप्रगल्म वृष्टिव्ययितस्य तेजः शिखिनः अङ्गारम् इव अयशः वितेनुः । हिन्दी--शताधिक अर्थात् असंख्य शत्रु संग्राम में स्फुरित होते, टंकारते धनुष से उस (नल ) द्वारा छोड़े गये असंख्य बाणों की असह्य वर्षा के कारण बुझे स्वकीय तेज रूप अग्नि के अंगारों के सदृश अयश का विस्तार करते थे । टिप्पणी-इस श्लोक में नल के शत्रुओं के निश्चत पराजय और नल के अद्भत धनुर्धारी होने का भाव है। मल्लिनाथ ने इसमें रूपक और उत्प्रेक्षा का अंगागिमाव संकर अलंकार माना है। साहित्य-विद्याधरी में उपमा और रूपक अलंकार बताये गये हैं। ___ 'प्रकाश' व्याख्या में 'स्फुरद्'-इत्यादि का विग्रह इस प्रकार किया गया हैस्फुरत् धनुनिस्वन, यस्य एवं विघश्च सः तस्य घना ये आशुगास्तेषां प्रगल्मा या वृष्टिस्तया व्ययितस्य ।' 'प्रकाश'-कार ने यह भी कहा है कि 'स्फुरद्धनुनिस्वनो यस्याम्' ऐसा विग्रह करके यह वृष्टि का विशेषण भी हो सकता है। उन्होंने दो प्रकार से और भी विग्रह किया है--'धनुनिस्वनं तनोति तयते वा धनुनिस्वनंतत् स्फुरन्प्रकाशमानश्चासौ धनुनिस्वनं तच्च तस्य । अथवा स्फुरन्तो धनुनिस्वनी धनुः सिंहनादौ यस्य चासौ स एव घनो मेघस्तस्या शुगा शिघ्रगामिनी प्रौढा च या वृष्टिस्तया व्ययितस्य । शिखिपक्ष में--स्फुरन्ती इन्द्रधनुजिते येषु ते च घना स्तेषामाशुगा शीघ्रगामिनी प्रौढा, आशुगेन वायुना वा प्रौढा या वृष्टिस्तया व्ययितस्य । एक और भी सम्भावना की है--'निस्वनं तन्वन्तीति निस्वन ततः स्फुरद्धनुर्युक्ता निस्वन ततश्च ये घनी मेघा इति ।'
SR No.009566
Book TitleNaishadhiya Charitam
Original Sutra AuthorHarsh Mahakavi
AuthorSanadhya Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size74 MB
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