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________________ नैषधमहाकाव्यम् जीवातु--इममेवार्थमन्यथा आह-रसैरिति । यस्य नलस्य कथा रसैः स्वादः, 'रसो गन्धो रसः स्वाद' इति विश्वः । सुधाम् अवधीरयति तिरस्करोति तथोक्ता अमृतादतिरिच्यमानस्वादेति यावत्, ताच्छील्ये णिनिः । भूर्जाया यस्य स भूजानिः भूपतिरित्यर्थः । 'जायाया निङि'ति बहुव्रीहो जायाशब्दस्य निङादेशः । स नलः गुणः शोयंदाक्षिण्यादिभिः । अद्भुतः लोकातिशयमहिमेत्यर्थः । अभूत् । कथम्भूतः सुवर्णदण्डश्च एक सितातपत्त्रञ्च ते कृते द्वन्द्वात् तत्कृताचिति ण्यन्तात् कर्मणि क्तः । ज्वलत्प्रतापावलिः कीर्तिमण्डलञ्च यस्य तथाभूतः । इह कीतः सितातपत्त्रस्वरूपेण पूर्वोक्तमपि सुवर्णदण्डवैशिष्टयात् राज्ञश्च गुणाद्भुतत्वेन वैचित्र्यात् न पुनरुक्तिदोषः । अत्रापि पूर्ववद् व्यतिरेकरूपकयोः संमृष्टिः ॥ २ ॥ अन्वयः- यस्य नलस्य कथा रसः सुघावधीरिणी गुणाद्भुतः ( सः) भूजानिः सुवर्णदण्डैकसितातपत्रितज्वलत्प्रतापावलिकोतिमण्डलः अभूत् । हिन्दी--जिस नल को कथा (शृङ्गारादि नव अथवा मधुरादि षट् ) रसों क कारण अमृत को तिरस्कारनेवाली है. गुणों के कारण अद्भुत वह भूमिपति ऐसा हुआ, जिसके सुवर्णदण्ड और श्वेत छत्र ही तेजोमयी प्रतापावलि और यशोमण्डल के सदृश थे। टिप्पणो—इस श्लोक में कवि का यह भाव है कि अनेक गुणों से युक्त होने के कारण राजा नल एक अद्भुत और अनुपम पृथ्वीपति था, धरती ने उसके गुणों पर अनुरक्त हो नलराज को ही अपना स्वामी स्वीकारा था। कथा के अमृत-तिरस्कारिणी होने में उसका नवरसमयी होना है। जिससे वह मघुरादिषड्- रसमयी सुधा से श्रेष्ठ है। राजा नल में गुण भी अनेक हैं। वह 'सुधावधीः' ( शोभनं धावतीति सुधा पुण्यसंचारिणी धीः यस्य सः ) अर्थात् पुण्यचरित्र है ( महाभारतांतर्गत 'नलोपाख्यान' ( ८1१ ) में तथा अन्यत्र नल 'पुण्यश्लोक' कहा गया है, तदेव (१११-४ में ) नल के अनेक गणों का उल्लेख है ); 'रणो' ( रणः अस्यास्तीति ) अर्थात् रणशूर है 'भूजा निः' अर्थात् पृथ्वीपति है । इस प्रकार वह मन्त्र, उत्साह और प्रभु शक्ति से सम्पन्न है। 'सुवर्णदण्डक'-इत्यादि विशेषण से नल का प्रतापी और यशस्वी होना द्योतित है । 'शोभमानः न्यायः द्विजातिवर्णानां दण्ड: शासनं वा यत्र तथा एक
SR No.009566
Book TitleNaishadhiya Charitam
Original Sutra AuthorHarsh Mahakavi
AuthorSanadhya Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size74 MB
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