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________________ प्रथमः सर्गः 'क्षितिरक्षिणः ' का अर्थं कलि के भय से मुक्ति दिलाने वाला राजा नल भी हो सकता है - क्षयार्थक 'क्षि' धातु से 'स्त्रियां क्तिन्' हो 'क्षिति' निष्पन्न हुआ, 'क्षिति' अर्थात् नाश | 'क्षितिः + अक्षिण:' ( अक्ष: वासो यस्य सः अक्षी अर्थात् पाँसे में वास करने वाला कलि ) अर्थात् अक्षी - कलि की क्षिति-मय में आदर नहीं रह जाता। कहा जाता है - 'कर्कोटकस्य नागस्य दमयन्त्या नलस्य च । पर्णस्य राजर्षेः कीर्त्तनं कलिनाशनम् ।' 'अक्षा: यस्य सन्ति सः अक्षी तस्य अक्षिणः' अर्थात् द्यूतव्यसनी राजा नल, उसकी भी 'क्षिति' अर्थात् धरती या राज्य है, यह आश्चर्यजनक भी है। सो द्यूतव्यसनी नरेश की कथा निश्चयतः मनोरंजक होगी, सुधा से मी सरस । कितना विचित्र है कि वह राजा अनंत कीर्तिशाली भी है । राजा नल 'महसां राशि:' अर्थात् सूर्य के तुल्य तेजस्वी है, 'सः' अर्थात् वही न | अर्थात् लुप्तोपमा अथवा लुतोत्प्रेक्षा अलंकार मानकर अर्थ हुआ कि सूर्य तुल्य तेजस्वी प्रतापी नल के अतिरिक्त कोई नहीं हुआ । नल की यही सूयं से समता चंद्रादि के प्रति अवज्ञा का कारण भी है। सूर्य ही वर्षा करके अन्नोत्पाहै । 'आदित्याज्जायते वृष्टि: ।' 'महोज्ज्वल' का विग्रह 'महैः उज्ज्वल : ' करके उत्सवों से देदीप्यमान अर्थ हुआ । 'महानू उज्ज्वलः शृङ्गारो यत्र दमयन्त्याः ' विग्रह में यह अर्थ भी संकेतित होता है कि दमयन्ती का उज्ज्वल अर्थात् शृंगार ( रति ) नल में ही था । 'शृंगारः शुचिरुज्ज्वलः इत्यमरः । इस सर्ग में प्रथम श्लोक से १४२वें श्लोक (सुता: कयाहूय) तक वंशस्थ छंद है । श्लोक में शब्दालंकार अनुप्रास है । अर्थालंकार उपमान 'सुधा' से उपमेय कथा का आधिक्य - निर्देश होने के कारण व्यतिरेक है और सूर्य और नल का अभेद होने से रूपक अथवा प्राकरणिक नल और अप्राकरणिक सूर्य के रिलष्ट पद में अनुबन्धन होने से श्लेष । इस प्रकार व्यक्तिरेक और रूपक की संसृष्टि तथा रूपक और श्लेव का संकर हुआ । 'सितच्छत्त्र कीर्तिमण्डलः' सूर्यं का भी विशेषण है - 'श्वेतातपत्रीकृतं कीतियुक्तं मण्डलं यस्य सः ' - श्वेत छत्र के समान विस्तृत मंडल वाला सूर्यं । रसैः कथा यस्य सुधावधीरिणी नलस्य भूजानिरभूद् गुणाद्भुतः । सुवर्णदण्डैक सितातपत्त्रितज्जलप्रतापावलिकीर्तिमण्डल: ॥२॥
SR No.009566
Book TitleNaishadhiya Charitam
Original Sutra AuthorHarsh Mahakavi
AuthorSanadhya Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size74 MB
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