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________________ (९) 'नलोपाख्यान' की सरल छोटी कथा 'नैषधीयचरित' में बहुत-थोड़ी ही ली गयी है। 'नलोपाख्यान' से आदि के छ। सर्गों को घटना को लेकर श्रीहर्ष ने विशाल; श्लोक राशि से संपन्न बाईस सर्ग रचे हैं। 'नलोपाख्यान' के १८६ छोटे अनुष्टुप् छन्दों में रची गयी कथा 'नैषध' में अठ्ठाईस-सौ मनोरम छन्दों में विस्तृत है। (१०) 'नलोपाख्यान' एक उपदेश-कया है, जब कि 'नैषधीयचरित' एक सरस, मनोरम महाकाव्य । ___क्या 'नैषध' अपूर्ण महाकाव्य है ? महाभारत के 'नलोपाख्यान' में उनतीस अध्यायों में जो नल-कथा है, वह नल के पुनः राज्य प्राप्त करने पर पूर्णता को प्राप्त हुई है। यह एक स्वाभाविक स्थिति है। इसी आधार को लेकर यह प्रश्न उठजाता है कि क्या 'नैषधीयचरित' एक अपूर्ण महाकाव्य है ? यह तो स्पष्ट ही है कि नैषध' का जो रूप आज प्राप्त है, उसमें सम्पूर्ण नलोपाख्यान नहीं है, केवल नलदमयन्ती के आमोद-प्रमोद के उल्लास में वह समाप्त हो जाता है। 'देहि मे पदपल्लवमुदारम्' के स्वर में 'पञ्चबाण' की उपासना के निमित्त दमयन्ती का आह्वान करता नल-नरेश अपने को प्रिया के कामपूजन में सहायक-परिचारक के रूप में उपस्थित करदेता है-'मवतु जनः परिचारकस्तवायम्' और इसके तुरन्त बाद 'काव्यसमाप्ति' का 'चिकीर्षु' कवि नायकमुख से आशीर्वचन प्रस्तुत करा देता है कि इस 'परिणयानन्दाभिषेकोत्सव' में 'प्राप्तसहस्रधारकलश्री: देव' 'चन्द्र' हमारे परमानन्द का कारण बनें- 'परिणयानन्दाभिषेकोत्सवे देवः प्राप्तसहस्रधारकलशश्रीरस्तु नस्तुष्टये।' इस स्थिति में इस उपाख्यान के 'नैषधीयचरित' में पूर्ण रूप से न होने के दो कारण हो सकते हैं-(१) श्रीहर्ष ने किसी कारणवश इतने ही कथाभाग को अपने काव्य के लिए उपयुक्त समझा। (२) श्रीहर्ष ने पूरी कथा का उपयोग करके महाकाव्य लिखा, परन्तु प्राप्त इतना ही-द्वाविंशसर्गात्मक होता है, शेष नष्ट हो गया। . इस द्वितीय मतवाद के पोषकों का कथन है कि श्रीहर्ष का 'नैषधीयचरित' पुष्कर से चूत में पराजित हो भटके नल-दमयन्तो के पुनर्मिलन और
SR No.009566
Book TitleNaishadhiya Charitam
Original Sutra AuthorHarsh Mahakavi
AuthorSanadhya Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size74 MB
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