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________________ ( २९ ) पाकर प्रियतमा दमयन्ती का भी एक प्रकार से दान करने के लिए निषधपति हर्ष के साथ तैयार हो जाता है । (४) प्रसन्न देवों के वरदानों में भी दोनों में अन्तर है । 'नलोपाख्यान' में प्रत्येक देव ने दो-दो वर दिये, इस प्रकार नल को आठ वरदान मिले, जब कि 'नषध' में इन्द्र ने तीन वर नल को दिये और एक दमयन्ती को। श्रीहर्ष के नल को अग्नि ने तीन वर दिये, जिनमें एक 'नलोपाख्यान' के समान है। यम से प्राप्त दो वरों में भी एक 'नलोपाख्यान' में मिलता है; हां वरुण के वर एक-से हैं । 'नलोपाख्यान' में न चिन्तामणि मन्त्र है और न इसी से सम्बद्ध सरस्वती का वरदान । यह वर अपनी कवि-कल्पना है। नलोपाख्यान में दमयन्ती को दिये गये वरों का भी उल्लेख नहीं है । (५ ) 'नलोपाख्यान' में नल-परिणय से क्रुद्ध कलि द्वापर के साथ निषध. देश पहुँचता है और बारहवें वर्ष में उसे स्वकार्य-सिद्धि का अवसर मिलता है। नल मूत्रोत्सर्ग के बाद बिना पैर धोये ही संध्या करते हैं। और कलि उनमें प्रविष्ट हो जाता है। 'नैषध' में कलि निषध-देश की राजवाटिका में छिपाछिपा नल-दमयन्ती-विलास को देखता है। ( ६ ) श्रीहर्ष ने दमयन्ती की सहचरी कला, काम, क्रोध, मोह, लोम ( कामसहचर ), इन्द्र की दूती, वाग्देवता सरस्वती - इन नवीन पात्रों की कल्पना की है, जिनकी मूल-उपाख्यान में चर्चा नहीं है। (७) अनेक वर्णन श्रीहर्ष की कल्पना के ही श्रेष्ठ उदाहरण हैं । वर्णन की समृद्धि तो श्रीहर्ष के अपार वैदग्ध्य और गैदुष्य की परिचायिका है । वृक्ष, सरोवर, नगर, हस, हंस की उड़ान, अश्व, अश्व की गति, स्वयंवर, विवाह, विवाह का उल्लास-उत्सव, कलि के माध्यम से चार्वाक दर्शन का प्रतिपादन, काम-केलि, प्रभात, संध्या, अन्धकार, चन्द्रोदय आदि के चित्रण कवि की अपार कल्पना-शीलता के द्योतक हैं, जो सर्वथा नवीन हैं। (८) श्रृंगार और प्रणय की विविध स्थितियों का अत्यन्त समृद्ध वर्णन स्वयं श्रीहर्ष की कल्पना है। इसके साथ ही हंस नल-प्रसंग में कारुण्य की जो स्वाभाविकता है, वह तो कवि के विशिष्ट संवेदन की परिचायिका है।
SR No.009566
Book TitleNaishadhiya Charitam
Original Sutra AuthorHarsh Mahakavi
AuthorSanadhya Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size74 MB
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