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________________ नैषधमहाकाव्यम् अधिपति ( राजा ) पुरुषश्रेष्ठ नल से छुटकारा पाकर जिसका वर्णन वाणी ( शब्दों) से भी नहीं किया जा सकता, उस आनन्द को प्राप्त किया। टिप्पणी-आनन्द की अनुभूति को अत्यन्त सुखद प्रकट करने के निमित्त उसकी अवाङ्मनोगोचर मोक्ष के आनन्द से समता की गयी है। इस सर्ग में इस श्लोक से लेकर १०१ वें श्लोक ( अमृता तिलक्ष्म ) तक 'वियोगिनी' छंद है, जिसके प्रथम-तृतीय चरणों में दस अक्षर इस क्रम से होते हैं-दो सगण (is), एक जगण (151), दसवाँ अक्षर गुरु (5) तथा द्वितीय-चतुर्थ में ग्यारह अक्षर इस क्रम से रहते हैं--एक सगण (15), एक भगण (II), एक रगण (sis), एक लघु, एक गुरु ( 15 )। 'प्रकाशकार' ने इसे 'वैतालीय' छंद कहा है। विद्याधर के अनुसार इस श्लोक में अनुप्रास और श्लेष अलंकार हैं, मल्लिनाथ इसमें श्लेष न मानकर अर्थान्तर प्रतोति के कारण 'ध्वनि' ही मानते हैं । उनका कथन है कि अभिधा से प्रकृतार्थ मात्र का नियंत्रण होता है अतः श्लेष संभव नहीं और मुख्यार्थ-बाध के अभाव में लक्षणा भी नहीं हो सकती, अतः व्यंजना के आश्रय से ही इष्टार्थ-प्रतीति होगी ॥१॥ अधुनीत खगः स नैकधा तनुमुत्फुल्लतनूरुहीकृताम् । करयन्त्रणदन्तुरान्तरे व्यलिखच्चञ्चुपुटेन पक्षती ॥२॥ जीवातु-अधुनीतेति । स खगो हंसः उत्फुल्लतनुरुहीकृतां नृपकरपीडनादुबुद्धय पतत्रीकृतां 'पतत्रञ्च तनूरुहमि'त्यमरः । तनु शरीरं नकधा, नबर्थस्य सुप्सुपेति समासः । नञ्समासे नलोपप्रसङ्गः। अधुनीत धूतवान् । घूजः क्यादेलंङिति तङ्, 'प्वादीनां ह्रस्व' इति हस्वः । किञ्च करयन्त्रणेन नृपकरपीडनेन दन्तुरे निम्नोन्नतमध्यप्रदेशे पक्षती पक्षमूले 'स्त्री पक्षतिः, पक्षमूलमि'त्यमरः चञ्चुपुटेन त्रोटिसम्पुटेन व्यलिखत् विलेखनेन ऋजूचकारेत्यर्थः । एतदादेः श्लोकचतुष्टयेषु स्वभावोक्तिरलङ्कारः ।। २ ॥ अन्वयः-सः खगः उत्फुल्लतनूरुहीकृतां तनुम् एकधा न अधुनीत । करयन्त्रणदन्तुरान्तरे पक्षती चञ्चुपुटेन व्यलिखत् । हिन्दी-उस विहंग ( हंस ) ने अपने रोमाञ्चित शरीर को अनेक प्रकार से कम्पित किया राजा के द्वारा पकड़े जाने से ऊँचे-नीचे मध्य भाग वाले पंखों को चोंच से सहलाकर बराबर किया।
SR No.009566
Book TitleNaishadhiya Charitam
Original Sutra AuthorHarsh Mahakavi
AuthorSanadhya Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size74 MB
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