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________________ नैषधमहाकाव्यम् अथवा चाम्पेयं नागकेसरं 'चाम्पेयः केसरो नागकेसरः काञ्चनाह्वय' इत्यमरः । अधीरया दृशा निपीय विक्लवदृष्टया गाढं दृष्ट्वा आशङ्कितवान् किञ्चिदनिष्टमुत्प्रेक्षितवान् । स नल: ‘अनिप्टाभ्यागमोत्प्रेक्षां शङ्कामाचक्षते बुधाः' इति लक्षणात् । वियोगिनां विपदे उदीतमुत्थितं धूमकेतुमशङ्कत अतर्कयदित्युप्रक्षालङ्कारः ॥ ९१ ।। अन्वयः-अलिस्रजा उच्चशेखरं चाम्पेयं कुड्मलम् अधीरया दृशा निपीय आतङ्कितवान् स: वियोगिनां विपदे उदीतं धूमकेतु म् अशङ्कत । हिन्दी-भ्रमरमाल से जिसका शिरोभाग उन्नत हो रहा था, ऐसी चम्पा की कली को अधीर दृष्टि से देखकर आतंकित उस ( नल ) ने वियोगियों के विनाशार्थ उदित धूमकेतु की आशंका की। टिप्पणी-लंबी चोंटी के समान जिसपर भ्रमरावली लिपटी है, उस चंपा की कली में विनाशकारी धूमकेतु की आशंका यह द्योतित करती है कि विरहिजनों को उसका देखना असह्य है । भौरा प्राणघाती होने से चंपकपुष्प पर नहीं जाता--इस मान्यता को ध्यान में रखते हुए मल्लिनाथ 'चाम्पेय. कुड्मल' का अर्थ 'नागकेसर' लिया है, जो पीले रंग का फूल होता है। उत्प्रेक्षा अलंकार ।।९१॥ गलसरागं भ्रमिभङ्गिभिः पतत् प्रसक्तभृङ्गावलि नागकेसरम् । स मारनाराचनिघर्षणस्खलज्ज्वलत्कणं शाणमिव व्यलोकयत् ॥९२ ।। जीवातु-गलदिति । स नलो गलत्परागं निर्यद्रजस्कं भ्रमिभङ्गिभिः भ्रमणप्रकाररुपलक्षितं पतद् भ्रश्यत् प्रसक्तभृङ्गावलि सक्तालिकुलं नागकेसरं कुसुमविशेष मारनाराचनिघर्षणैः स्मरशरकर्षणैः स्खलन्तः लुठन्तः ज्वलन्तश्च कणाः स्फुलिङ्गा यस्य तं शाणं निकषोत्पलमिवेत्युत्प्रेक्षा व्यलोकयत्, 'शाणस्तु निकषः कष' इत्यमरः ।। ९२ ॥ अन्वयः--स: गलत्परागं भ्रमभङ्गिभिः पतत्प्रसक्तभृङ्गावलि नागकेसरं मारनाराचनिघर्षणस्खलज्ज्वलत्कणं शाणम् इव व्यलोकयत् । हिन्दी-उस ( राजा ) ने जिससे पराग झड़ रहा था और जिसपर
SR No.009566
Book TitleNaishadhiya Charitam
Original Sutra AuthorHarsh Mahakavi
AuthorSanadhya Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size74 MB
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