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________________ प्रथमः सर्गः ७७ अन्यत्र स्विन्नाङ्गीति च गम्यते। स्मितशोभिनः विकासरम्याः कुड्मला मुकुला रदनाश्च यस्यास्तां मन्दहासमधुरदन्तमुकुला च गम्यते । दरकम्पिनी वायुस्पर्शादीषत्कम्पिनी सात्त्विकवेपथुमती च नवा लता वल्ली तत्सदृशी कान्ता च गम्यते । नृपेण क; दृशा करणेन दरादराभ्यां भयतृष्णाम्यामुपलक्षितेन सता पपे अवेक्षिता गाढं दृष्टा इत्यर्थः । उद्दीपकत्वात् दरः प्रियासादृश्यादादरश्च । 'दरोऽस्त्री शङ्खभीगर्तेष्वल्पार्थे त्वव्ययम्' इति वैजयन्ती । अत्र प्रस्तुतविशेषणसाम्यादप्रस्तुतनायिकाप्रतीतेः समासोक्तिरलङ्कारः । 'विशेषणस्य तौल्येन यत्र प्रस्तुतवर्णनात् । अप्रस्तुतस्य गम्यत्वे सा समासोक्तिरिष्यत' इति लक्षणात् ॥ ८५ ॥ अन्वयः-गन्धवहेन चुम्बिता मकरन्दशीकरैः करम्बिताङ्गी स्मितशोभिकुड्मला दरकम्पिनि नवा लता नृपेण दरादराभ्यां दृशा पपे। हिन्दी - सुगन्धिद्रव्य लगाये नायक के तुल्य गंधवह ( सुरमि समीर ) द्वारा चुमी जाती, पुरुषस्पर्श से उत्पन्न स्वेद के समान पुष्प-रस-कणों से युक्त अगों वाली ( सस्वेदा ), मुसकान के कारण स्पष्ट होती सुन्दर दंतावली के तुल्य खिली मनोहर कलिकाओं से सम्पन्न, मात्विक कंप के सदृश वाय से धीरे-धीरे हिलती नवीना सुन्दरी के समान नयी लता को राजा ने दर (डर) और आदर के साथ देखा । टिप्पणी-यहाँ वल्लरी को उस तन्वी के तुल्य माना गया है, जो 'नवा लता'-नयी लता के समान तो है ही, उसमें 'न विद्यते बालता ( जिसमें बचपन शेष नहीं रहा ) यस्यां'-तरुणी भी है। लता को चूमनेवाला गंधवह समीरण 'नवालतागन्धवह' भी ( बालतागन्धस्य वहः लेशः अपि यस्मिन् न विद्यते )-जिसमें नाम को भी बचपन नहीं रह गया है-तरुण है, वह चन्दन, कस्तूरी आदि की सगन्ध लगाये शौकीन छैला भी है। राजा ने उस समीरलता के मिलन को कुतूहलजन्य आदर के साथ देखा, स्वयम् विरही--वियुक्त होने के कारण वह मिलन उसे असह्य लगा। यह दर ( डर ) का कारण हुआ। श्लिष्ट विशेषण, लिंग और कार्य की समानता के आधार पर लता में अप्रस्तुत नायिका प्रतीति के कारण समासोक्ति ।।८५॥
SR No.009566
Book TitleNaishadhiya Charitam
Original Sutra AuthorHarsh Mahakavi
AuthorSanadhya Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size74 MB
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