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________________ ७८ नंषधमहाकाव्यम् विचिन्वतीः पान्थपतङ्गहिंसनरपुण्यकर्माण्यलिकज्जलच्छलात् । व्यलोकयच्चम्पककोरकावलीः स शम्बरारेबलिदोपिका इव ॥८६।। जीवातु--विचिन्वतीरिति । पन्थानं गन्छन्ति नित्यमिति पान्थाः नित्यपथिकाः, 'पथोऽण् नित्यमि'त्यणप्रत्ययः पन्थादेशश्च । स एव पतङ्गाः पक्षिण: 'पतङ्गः पक्षिसूर्ययोः' इत्यमरः । तेषां हिंसनः वधैः अपुण्यकर्माण्येव अलयः कज्जलानीवेत्युपमितसमासः । तेषां छलादित्यपह्नवालङ्कारः । विचिन्वतीः संगृह्णतीः. हिंसापापकारिणीरित्यर्थः । चम्पककोरकावलीः शम्बरारेर्मनसिजस्य बलिदीपिकाः पूजादीपिका इवेत्युत्प्रेक्षा, स नलो व्यलोकयत् ॥ ८६ ॥ अन्वयः-सः अलिकज्जलच्छलात् पान्थपतङ्गहिंसनः अपुण्यकर्माणि विचिस्वतीः शम्बरारेः बलिदीपिकाः इव चम्पककोरकावलीः व्यलोकयत् ।। हिन्दी--उस ( राजा ) ने भ्रमर रूप काजल के व्याज से पथिक रूपी पतंगों को जला मारने के पाप को इकठ्ठा करती कामपूजा में प्रयुक्त की जाने वाली दीप-वत्तिकाओं ( शमा ) की भांति प्रतीत होती चम्पे की कलियों को देखा। टिप्पणी-एक मान्यता यह है कि भौंरा चम्पा-पुष्प पर नहीं जाता, यदि जाता है तो मर जाता है। सो चम्पा के पुष्प पर आसक्त हो चिपके मौरे दीपिका में लगे काजल-कालौंच के तुल्य हैं, कृष्णवर्ण होने से जिसे अपुण्यकमं कहा गया है। चम्पक इतना कामोद्दीपक माना गया है कि जिसे देख विरही भर जाते हैं। विद्याधर ने इसमें रूपक अपह्नति और उपमा अलंकार का निर्देश किया है, मल्लिनाथ ने अपह्नव और उत्प्रेक्षा का । चन्द्रकलाकार के अनुसार यहाँ कैतवापह्नति-उत्प्रेक्षा-उपमा का अंगांगिभाव संकर है ।।८६॥ अमन्यतासौ कुसुमेधुगर्भज परागमन्धङ्करणं वियोगिनाम् । स्मरेण मुक्तेषु पुरा पुरारये तदङ्गभस्मेव शरेषु सङ्गतम् ॥ ८७ ॥ जीवातु-अमन्यतेति । असौ नलः कुसुमान्येव इषवः कामबाणास्तेषां गर्भजं गर्भजातं वियोगिनामिति कर्मणि षष्ठी। अन्धाः क्रियन्तेऽनेनेत्यन्धकरणं 'आढयसुभगे'त्यादिना व्यर्थे ख्युन्प्रत्ययः, 'अद्विषदि'त्यादिना मुमा
SR No.009566
Book TitleNaishadhiya Charitam
Original Sutra AuthorHarsh Mahakavi
AuthorSanadhya Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size74 MB
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