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________________ ( १४ ) सत्कारी पंडितों ने वैसा ही किया। राजा ने भी श्रीहर्ष का सत्कार समान करके सादर काशी भेजा वहाँ उन्होंने राजा जयंतचन्द्र से भेंट कर सारा वृत्तांत कहा। राजा संतुष्ट हुआ और 'नैषधीयचरित' लोक में प्रसिद्ध हुआ । इसी समय जयंतचन्द्र महाराज का प्रधान पद्माकर अणहिल्लपुर गया हुआ था । वहाँ सरोवर के किनारे घोबी के घोये कपड़ों में उसने एक साड़ी फैली देखी, जिस पर भौंरे ऐसे मनमना रहे थे, जैसे कि केतकी पर । प्रधानामात्य ने विचारा कि यह साड़ी अवश्य किसी पद्मिनी नारी की है । संध्या को धोबी के बताने पर वह साड़ी की मालिकिन से मिला । वह स्त्री एक शालापति की विधवा थी, तरुणी और सुन्दरी । नाम था सूहवदेवी । प्रधान सोमनाथ की यात्रा से निवृत्त हो श्रीकुमारपाल के पास से सूहवदेवी को काशी ले आया और वहाँ वह महाराज जयंतचन्द्र को भोगिनी बन कर प्रसिद्ध हो गयी । वह विदुषी थी और अभिमानिनी । लोक में वह 'कलाभारती' कही जाने लगी ! श्रीहर्ष 'नरभारती' कहे जाते थे । यह ईर्ष्यालु सूहवदेवी न सह पायी । एक दिन सत्कार पूर्वक उसने श्रीहर्ष को बुलवाया और पूछा कि आप कौन हैं ? श्रीहर्ष ने कहा- 'मैं कला-सर्वज्ञ हूँ ।' तुरंत गृहवदेवी ने कहा--' तो फिर जूते बनाकर पहिनाइए ।' तात्पर्य यह था कि श्रीहर्ष ऐसा निम्नकार्य करना अस्वीकारेंगे और 'कलासर्वज्ञ' नहीं, अज्ञ समझे जायेंगे, पर श्रीहर्ष ने स्वीकारा और बल्कल के जूते बनाकर साँझ को उसे एक चर्मकार की कला से पहिना दिये । किन्तु इससे श्रीहर्ष ने अपने को अत्यन्त अपमानित माना और राजा से सारा समाचार कह सांसारिकता से खिन्न हो गंगातट पर जा संन्यासी हो गये । अब अवशिष्ट जीवन इसी प्रकार व्यतीत हुआ । अभिमानिनी सूवदेवी और उसके ही दुष्ट संसर्ग के कारण राजा का कैसा शोचनीय अन्त हुआ, यह एक अवान्तर कथा है । जीवन से संबद्ध कुछ किंवदन्तियाँ श्रीहर्ष के संबंध में गदाधर पंडित ने लिखा है कि राजा गोविन्दचन्द्र की सभा में श्रीहर्ष अत्यन्त संमानित थे, जिससे अन्य कविपंडित जलते थे । अपने प्रसिद्ध तर्कशास्त्रीय ग्रन्थ 'खंडनखंडखाद्य' की जब उन्होंने रचना की तब ईर्ष्यालु पंडित उन्हें 'तर्कशमी वृक्षपरिपूर्ण शुष्कमरु' कहकर उनका
SR No.009566
Book TitleNaishadhiya Charitam
Original Sutra AuthorHarsh Mahakavi
AuthorSanadhya Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size74 MB
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