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________________ ( १५ ) उपहास करने लगे। श्रीहर्ष ने इस पर अपनी काव्य-प्रतिमा प्रकट करने के लिए 'नलचरित' महाकाव्य लिखकर राजा को भेंट किया। इस पर प्रसन्न हो राजा ने उसे दो आसन और दो ताम्बूल देकर 'कविपंडित' की उपाधि से संमानित किया। वे आसनद्वय और ताम्बूलद्वय तर्क और काव्य-दो विषयों में उनके अगाध ज्ञान को स्वीकृति मान्यता के रूप में थे। काश्मीर के पण्डितों में कहा जाता है कि श्रीहर्ष 'काव्यप्रकाश' के रचयिता राजानक मम्मट के भागिनेय थे । सो भांजे ने अपना महाकाव्य रचकर पहिले साहित्यशास्त्र के परम ज्ञाता अपने मामा को ही दिखाया। मामा मम्मट ने काव्य को देखकर सखेद हर्ष प्रकट किया कि यदि यह रचना 'काव्यप्रकाश'-रचना से पूर्व प्राप्त हो जाती तो 'दोष-परिच्छेद'-रचना में इतना श्रम न करना पड़ता, सब दोषों के उदाहरण इसी काव्य में प्राप्त हो जाते। श्रीहर्ष ने क्षोभ के साथ जानना चाहा कि पण्डित मामा एक ही द्वोष इसमें दिखा दें। मामा मम्मट ने 'नपधीयचरित' ( २०६२ ) का श्लोक तव वर्त्मनि वर्त्ततां शिवं पुनरस्तु त्वरितं समागमः । अपि साधय साधयेप्सितं स्मरणीयाः समये वयं वयः ॥ दिखा दिया। यों 'साहित्यविद्याधरी' के अनुसार इस मंगलश्लोक में 'आशी.' अलंकार माना गया है, पर कहा जाता है कि पदच्छेद में यत्किञ्चित्-परिवर्तन कर देने से यह अमंगलवाचक हो जाता है। पर प्रश्न यह है कि यह परिवर्तन क्यों किया जाय? इसके अतिरिक्त मम्मट का कार्य-काल १०५० वि० माना जाता है और जैसा आगे स्पष्ट होगा कि श्रीहर्ष की स्थिति इस काल में नहीं है। इसी प्रकार गदावर पण्डित का कथन भी एक किंवदन्ती ही है। श्रीहर्ष की वंश-परम्परा श्रीहर्ष के पिता का नाम श्रीहीर था, यह तो स्वयं उनकी आत्मकथा से प्रमाणित है, पर उनके पुत्र के विषय में कुछ ज्ञात नहीं है; किन्तु ऐसा माना जाता है कि उनके पौत्र का नाम कमलाकर गुप्त था। बताया जाता है कि इन्होंने निषधीयचरितम्' पर भाष्य लिखा था। यह भी माना जाता है कि गुजरात में इस महाकाव्य की प्रतिलिपि लाने वाले कवि हरिहर श्रीहर्प के वंशज थे।
SR No.009566
Book TitleNaishadhiya Charitam
Original Sutra AuthorHarsh Mahakavi
AuthorSanadhya Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size74 MB
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