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________________ रचे प्रबंध को अन्य जनों के सामान्य प्रबन्ध की भाँति अवमानित कर रही हो ?' देवी बोली-'अरे झूठे, क्या स्मरण नहीं आता कि अपने काव्य के एकादश सर्ग के चौसठवें श्लोक में तूने मुझे विष्णुपत्नी कहा है और मेरे लोक-विश्रुत कन्याभाव को खंडित किया है ? इसी से मैंने पोथी फेंक दी।' श्रीहर्ष ने कहा-'तो क्यों अपने एक अवतार में नारायण को पति बनाया ? पुराणों में भी आपको विष्णपत्नी कहा जाता है। सच पर क्यों कुपित होती हैं, क्या क्रुद्ध होने से कलंक से छूट पायेंगी?' भारती देवी ने स्वयं ग्रन्थ उठाकर हाथ में रखा और ग्रन्थ की प्रशंसा की। श्रीहर्ष ने काश्मीरी पंडितों से निवेदन किया कि आप लोग यहां के राजा माधवदेव को ग्रन्थ दिखा दें और इसकी शुद्धि का प्रमाणपत्र दिलवा दें, जिसे मैं महाराज जयंतचन्द्र के संमुख प्रस्तुत कर सकूँ। पर भारती देवी द्वारा मान्य होने पर भी न तो पंडितगणों ने प्रमाण लेख दिया, न राजा को ही ग्रन्थ दिखाया। श्रीहर्ष कई मास प्रतीक्षा करते ठहरे रहे। धीरे-धीरे पास की सामग्री समाप्त हो गयी, अपना माल-असबाव बेचना पड़ गया । एकबार वे एक कूप-जलाशय के निकट मंदिर में एकांत में रुद्रजप कर रहे थे कि जल भरने आयीं दो स्त्रियों में जल भरने को लेकर गाली-गलौज और मार-पीट हो गयी, सिर फूट गये । अभियोग राजा के यहां गया, जहां साक्षी की खोज हुई। पूछे जाने पर दोनों स्त्रियों ने कहा कि हमारे झगड़े का कोई और साक्षी तो नहीं है, किन्तु वहाँ एक ब्राह्मण जप कर रहा था। राजा के आदमी श्रीहर्ष को ले आये। पूछे जाने पर श्रीहर्ष ने संस्कृत भाषा में कहा'देव, मैं परदेशी हूँ, यहां की लोकभाषा नहीं समझता, जिसमें ये दोनों बोल रहीं थी, हाँ वे बोले गये शब्द सुना सकता हूँ।' राजा के कहने पर श्रीहर्ष ने प्रतिशब्द, उसी क्रम से भाषण सुना दिया। राजा चमत्कृत हो गये। धन्य है इसकी प्रज्ञा | धन्य है अवधारणा शक्ति ! स्त्रियों के विवाद का निर्णय करके राजा ने श्रीहर्ष से उनका परिचय सादर पूछा । श्रीहर्ष ने सारी कथा सुनाकर कहा-'राजन्, पंडितों की दुर्जनता के कारण आपकी नगरी में दुःख उठा रहा हूँ। राजाने पंडितों को बुलाकर धिक्कारा और कहा कि अरे दुष्टों अपने-अपने घर ले आकर तुम सब ऐसे महात्मा को
SR No.009566
Book TitleNaishadhiya Charitam
Original Sutra AuthorHarsh Mahakavi
AuthorSanadhya Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size74 MB
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