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________________ इन्द्रियस्थान-9०४." (८३७) - जिस मनुष्यको पर्वके विनाही सूर्य और चन्द्रमाका ग्रहण दिखाई देताहो वह रोगी हो अथवा निरोगी हो अवश्य मृत्युको प्राप्त होताहै ॥ १२ ॥ नसूय॑महश्चन्द्रमनग्नौधममुत्थितम् । अग्निवानिष्प्रभंरात्रौदृष्ट्वामरणमृच्छति ॥१३॥ जिस मनुष्यको रात्रिको सूर्य और दिनमें चंद्रमाका प्रकाश दिखाई देताहो और अग्निके विना ही धुओं उठता दिखाई देताहो अथवा रात्रिके समय प्रकाशमान . मान भी प्रभारहित दिखाई देताहो वह मृत्युको प्राप्त होताहै ॥ १३ ॥ प्रभावतःप्रभाहीनान्निष्प्रभावान्प्रभावतः। नराविलिङ्गान्पश्यन्तिभावान्प्राणाझिहासवः ॥ १४ ॥ जिस मनुष्यको प्रकाशमान वस्तुयें निस्तेज प्रतीत होतीहों और प्रकाश रहित प्रकाशमान दिखाई देती हों। इसी प्रकार अन्य द्रव्यों में भी विपरीत लक्षणोंको देखे उस मनुष्यकी अवश्य मृत्यु होती है ॥ १४ ॥ व्याकतानिविवर्णानिविसंख्योपगतीनिच । विनिमित्तानिपश्यन्तिरूपाण्यायुक्षियनराः ॥ १५॥ जिस रोगांकी आयु नष्ट होगयीहो वह संपूर्ण वस्तुओंको विकृतिरूपसे विकृत. वर्णवाली और विपरीत संख्यावाली तथा कारणसे विपरीत ही देखनाहै ॥ १५ ॥ • यश्चपश्यत्यदृश्यान्वैदृश्यान्यश्चनपश्यति । तावुभौपश्यतः क्षिप्रयमक्षयमसंशयम् ॥ १६ ॥ जो मनुष्य अदृश्य वस्तुओंको देखे और जो दृश्योंको भी न देखे यह दोनों निश्चय मृत्युको प्राप्त होतेहैं ॥ १६ ॥ कर्णेन्द्रियद्वारा परीक्षा । अशब्दस्यचय:श्रोताशब्दान्यश्चनबुध्यते । द्वावप्यतौयथाप्रेतीतथाज्ञेयौविजानता ॥ १७॥ नव रोगी शब्दोंको श्रवण न करे और जो विना ही शब्द होनेके शब्दोंको सुने यह दोनों मृत्युके मुखमें पड़े जानना चाहिये ।। १७॥ संवृत्त्याङ्गुलिभिःकर्णीज्वालाशब्दयआतुरः। नशृणोतिगतासुंतबुदिमान्परिवर्जयेत् ॥१८॥ जो रोगी अपने दोनों कानोंको अंगुलियोंसे दवाकर बन्द कर लेनेपर सॉय सार्य
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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