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________________ (६२६) चरकसंहिता-मा० टी०। यस्यदर्शनमायातिमारुतोऽम्बरगोचरः । आग्नि यातिवादीप्तस्तस्यायुःक्षयमादिशेत् ॥६॥ जिस रोगोको आकाशमें विचरनेवाली वायु मूर्तिमान दिखाई देनेलगे अथवा प्रज्वलित आन दिखाई न देवे उसकी शीव मृत्यु होजातीहै ॥६॥ जलेसुविमलेजालमजालावततेतथा । स्थितेगच्छतिवादृष्ट्वाजीवितात्परिमुच्यते ॥ ७॥ . जिस रागीको निर्मल जलमें जिसमें जाल न पडाहो उसमें जाल प्रतीत हो और जो स्थिरजलको चंचल समझे वह मनुष्य मृत्युको प्राप्त होताहै ॥ ७ ॥ जागत्पश्यतियःप्रेतात्रक्षांसिविविधानिच । अन्यद्वाप्यद्भुतंकिंच्चिन्नसजीवितुमर्हति॥८॥ जिस रोगीको जाग्रत् अवस्थामेही अनेक प्रकारके प्रेत और राक्षस दिखाई देनेअथवा अन्य इसीप्रकार अद्भुत सामान प्रतीत होनेलगे वह जीता नहीं रहसकता अर्थात् मृत्युको प्राप्त होताहै ॥ ८॥ योऽग्निप्रतिवर्णस्र्थनीलंपश्यतिनिष्प्रभम् । कृष्णंवायदिवाशुक्लनिशांवसतिसप्तमीम् ॥९॥ जो रोगी अपने ठीक स्वभाव और वर्णमें स्थित अग्निको नीले रंग और कांतिरहित अथवा कृष्ण या श्वेत देखे वह आठदिनके बीचमें मृत्युको प्राप्त होताहै॥९॥ मरीचीनसतोमेघान्मेघान्वाप्यसतोऽम्बरे। विद्युतोवाविनामधैः पश्यन्मरणमृच्छति ॥१०॥ जिप्स रोगीको विना प्रकाशके आकाशमें प्रकाश प्रतीत होताहो अथवा विनाही बादलोंके आकाश मेघाच्छन्न प्रतीत होताहो अथवा विनाही मेघोंके बिजली चमकबी दिखाई देतीहो वह अवश्य मृत्युको प्राप्त होताहै ॥१०॥ मृण्मयीमिवयःपात्रीकृष्णाम्बरसमावृताम् । आदित्यमीक्षतशुद्धचन्द्रवालसजीवति ॥ ११॥ जिस रोगीको स्वच्छ सूर्य अथवा चन्द्रमा काले कपडेसे लिपटाहुभा या मट्टीके. पात्रके समान दिखाई देवे वह मृत्युको प्राप्त होताहै ॥ ११॥ . अपर्वणियदापश्येत्सूर्याचन्द्रमसोर्यहम् । .., अव्याधितोव्याधितोवातदन्ततस्यजीवनम् ॥ १२...
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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