SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 81
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - सूत्रस्थान - अ० १, . (-२३ ) पोना अच्छा है. परंतु पाखंड से विद्वान् वैद्यकासा रूप धारणकर शरणागत रोगि योंको भ्रममें डालकर उनसे अन्न पान धन आदि लेना कदापि उचित नहीं । इस लिये वैद्य होने की इच्छावाला बुद्धिमान् मनुष्य पहले जो जो वैद्योंके गुण कहे हैं ( आगे लिखेंगे ) उनको अपनेमें उत्पन्न करे फिर मनुष्यों के प्राणोंकी रक्षा के लिये सदैव यत्नवान् रहै क्योंकि वैद्य मनुष्यों के प्राणोंका देनेवाला होता है । औषधीं वही उत्तम होती है जो रोगसे छुडाकर आरोग्य बनावे | और जो रोगों से छुडादे उसीको उत्तम वैद्य कहते हैं । सम्पूर्ण कमका विधिवत् प्रयोग कियाहुआ संपूर्ण गुणोंसे युक्त वैद्यको सिद्धि आरै ख्यातिको देता है ॥ १२६-१३३ ॥ तत्र श्लोकाः | आयुर्वेदागमोहेतुरागमस्य प्रवर्त्तनम् । सूत्रणं साभ्यनुज्ञानमायुर्वेदस्यनिर्णयः ॥ १३४ ॥ सम्पूर्णकारणंज्ञेयं आयुर्वेदप्रयोजनम् । हेतवश्चैव दोषाश्च भेषजसंग्रहेणच ॥ ॥ १३५ ॥ रसाः सप्रत्ययद्रव्या स्त्रिविधोद्रव्यसंग्रहः । मूलिन्यश्चफलिन्यश्च स्नेहाश्चलवणानिच ॥ १३६ ॥ मूत्रं क्षीराणिवृक्षाश्चषड्येक्षीरत्वगाश्रयाः । कर्माणि चैषां सर्वेषां योगायोगगुणागुणाः ॥ १३७ ॥ वैद्यापवादोयत्रस्थाः सर्वे चभिषजांगुणाः। सर्वमेतत्समाख्यातं पूर्वेऽध्यायेमहर्षिणा ॥ १३८॥ इति दीर्घजीविताध्यायः ॥ १ ॥ अब इस अध्यायका उपसंहार कहते हैं इस अध्यायमें आयुर्वेदका आगमन, और उसके आनेका कारण, आयुर्वेदकी प्रवृत्ति, अग्निवेशादिकों का संहिताएं बनाना, आयुर्वेदका निर्णय, संपूर्ण कारण और कार्य, आयुर्वेदका प्रयोजन, हेतु, दोष संक्षेपसे औषधसंग्रह कथन, छःरस, द्रव्य तीन प्रकारका द्रव्यसंग्रह, फलप्रधान, मूलप्रधान द्रव्य, स्नेह, लवण, मूत्राष्टक, दूधवर्ग, छः वृक्ष जिनके दूध और छिलके काम आते हैं । इन सवके कर्म तथा योग, अयोग, गुण, अगुण, वैद्यके दोष और वैद्यकी सिद्धि ख्यातिका प्रकार यह सब इस प्रथमाध्याय में वर्णन किया है ।। १३४ - १३८ ॥ : इति श्रीमहर्षिचरकप्रणीतायुर्वेदीय संहितायां पटियाला राज्यांतर्गतटकसालनिवासि - वैद्यपंचानन वैद्यरत्न पं० रामप्रसादैवैद्योपाध्यायविरचितप्रसादन्याख्यभापाटीकायां दीर्घजीवितीयो नाम प्रथमोध्यायः ॥ १ ॥
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy