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________________ (२२) चरकसंहिता-भा० टी०। क्योंकि विना जानी औषधका प्रयोग कियाहुआ जैसे विष, शस्त्र, आग्ने, विद्युत मनुष्यको मारडालते हैं ऐसे अनर्थकारक होता है । विचारकर जानीहुई औषधी अमृतके समान गुणको करती है । जो औषध नाम, रूप, गुण इन तीनास जानी हुई नहीं अथवा जानीहुई होनेपर भी अनुचित रीतिसे प्रयुक्त कीगई हो वह औषधी महाअनर्थको करती है । इसीप्रकार अच्छीतरह जानकर प्रयोगमें लायाहुआ विप भी उत्तम औषधींके गुणको करताहै । और उत्तम औषधी अनुचित विधिसे देनेसे विषकी समान मारडालती है । इसलिये वैद्योंको उचित है कि विना युक्तिसे कभी ओषधीका प्रयोग न करें॥१२२॥१२३॥१२४॥१२६॥ मूर्ख वैद्यके औषधका निषेध ।। सशेपसातुरंकुऱ्यान्नत्वज्ञमतमौषधम् । दु:खितायशयानाय श्रदधानायरोगिणे ॥ १२६ ॥ योभेषजमविज्ञायप्राज्ञमानीप्रयच्छति । तस्याथमृत्युदतस्यदुर्मतेस्त्यक्तधर्मणः ॥ ॥ १२७ ॥ नरोनरकपातीस्यात्तस्यसम्भाषणादपि । वरमाशीविपविपक्कथितंताम्रमेववा ॥ १२८ ॥ पीतमत्यग्निसन्तप्ता भाक्षितावाप्ययागुडाः । नतुश्रुतवतावेदविभ्रताशरणागतात् १२९ ॥ गृहीतमन्नपानवावित्र्तवारोगपीडितात् । भिषक्वु. भूर्युर्मतिमानतः स्याद्गुणसम्पदि ॥ १३०॥ परंप्रयत्नमातिष्ठेप्राणदास्याद्यथानृणाम् । तदेवयुक्तंभैपज्यंयदारोग्यायकल्पते ॥ १३१ ॥सचैवभिपजांश्रेष्ठोरोगेभ्योयःप्रमोचयेत् । सम्यक्प्रयोगंसर्वेपांसिद्धिराख्यातिकर्मणाम् ॥ १३२ ॥ सिद्धिराख्यातिसर्वेश्चगुणैर्युक्तंभिपक्तमम् इति ॥ १३३ ॥ जीवन और आरोग्यताकी इच्छावालेको कभी अयोग्यरीतिसे औषध सेवन न करना चाहिये । यदि इंद्रलोकसे वन गिरकर मनुष्यके शिरम लगे वह अच्छा है क्योकि उससे भी शायद मनुष्य जीवित रहसकता हो, परंतु अज्ञ ( मूर्ख) की दीई ओपी उस वज्रसे भी अधिक दुर्गुण करती है अर्थात मारही डालती है जो बंध दुःसले व्याकुल शय्यापर पढे श्रद्धालु रोगीको विनाजानी औषधी देदे. ताई उस धर्मरदित, पापी, नरकगामी मृत्युके दूतसे वोलनेम भी मनुष्य नरकगामा हानाता है । सांपविप पोलेना अच्छा है, लाल कियागुआ तपाहुआ ताम्रभी
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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