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________________ (२४) चरकसंहिता-भा० टी०। द्वितीयोऽध्यायः । प्रतिज्ञावर्णन । अथातोऽपामार्गतण्डुलीयमध्यायं व्याख्यास्याम् इतिह स्माहभगवानात्रेयः। भगवान् आत्रेय कहने लगे कि अब हम अपामार्गतण्डुलीय नामक दूसरे अध्यायका कथन करते हैं ॥१॥ ऊर्द्धगतरोगनाशक द्रव्य । अपामार्गस्यवीजानिपिप्पलीमरिचानिच । विडङ्गान्यथाशनणिसर्पपांस्तुम्बुरूणिच ॥१॥ अजाजीञ्चाजगन्धाञ्चपीलून्येलोहरेणुकाम् । पृथ्वीकांसुरसाश्वेतांकुठेरकफणिजकौ ॥२॥ शिरीपवीजंलशनंहारद्रलवणद्वयम् । ज्योतिष्मतीनागरञ्चविद्यान्मूर्द्धविरेचने ॥३॥ गौरवेशिरसाशलेपीनसेऽर्धावभेदके । क्रिमिव्याधावपस्मारेघ्राणनाशेप्रमोहने ॥४॥ अपामार्गके वीज, पीपल, कालीमिर्च, वायविडंग, सुहांजनेके बीज, सरसों तुंवर, काला जीरा, अजमोद, पीलू, इलायची, रेणुका, बड़ी इलायची, तुलसकि धाज. सफेद कोयलके वीज, छोटी तुलसीके वीज, सिरसके बीज, लहसन, दाना हलदिय. संघा और संचर नमक, मालकांगनीके वीज, साट, इन सव औषधियांको शिरोविरेचन देवे । मस्तकके भारीपनमें, शिरकी पीडामें, पीनस रोगम, आधाशीशीम, मस्तकके कृमियाम, अपस्मारमं, गंध लेनकी शक्तिके जाते रहनेम. बेहोशीम, इतने रोगाम प्रयोग करे ॥ १ ॥२॥३॥ ४ ॥ वान्तिकारक द्रव्य । मदनंमधुकंनिम्बंजीमतंकृतवेधनम् । पिप्पलीकुटजेक्ष्वाकूप्येलांघामार्गवाणिच ॥ ५॥ उपस्थितेश्लेष्मापित्तव्याधावामाशयाश्रये । वमनार्थप्रयुजीतभिपग्देहमदृषयन् ॥६॥ मनफल. मुलटी, नीम, जीमूत( कड़वी तोरईका भेद),कृतवेधन (तोरई),पीपल, मट जा.कटुवा, पडी इलायची, कड़वी तोरई इन आँपधिपांको आमाशयमं स्थित
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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