SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 637
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विमानस्थान-अ०७. (५७९). जो कृमिनाशक पथ्यादि कृमियोंके प्रकृति विघातक कथन करआयेहँ अव उनकी व्याख्या करतेहैं । जैसे मूषिकपर्णीको जडसहित तथा अग्रभागसहित लेकर उसके छोटे २ टुकडे कर डाले फिर उसको उखलीमें कूटकर दोनों हाथोंसे दवा. उसका रस निचोड ले। उस रसमें लालचावलोंके आटेको मिलाकर विधिवत् पूडिये बनाले इन पूडियोंको निर्धूम अग्निपर पका विडंगका तैल और सेंधानामक मिलाकर जिस मनुष्यके कोष्ठमें कृमि हों उसको यह खानेको देवे । इसके ऊपर खट्टी कांजीका जल · अथवा दहीका पानी सेंधेनमकयुक्त पंचकोलका चूर्ण मिलाकर पानेके लिये देवे ॥ २६ ॥ अनेनकल्पेनमार्कवार्कसहचरनीपनिगुण्डीसुमुखसुरसंकुठेरक-. कण्डीरकालमालकपर्णा सक्षवकफणिज्झकबकुलकुटजसुवर्णक्षीरीसुरसानामन्यतस्मिन्कारयेत्युपलिकानितथाकिलिहीकिराततिक्तकसुवहाललकहरीतकीविभीतकस्वरसेषुकारयेत् यूपलिकाः । स्वरसांश्चैतानेकैकशोद्वन्द्वशःसर्वशोवामधुविलुलितान्प्रातरनन्नायपातुप्रयच्छेत् ॥ २७॥ इसी प्रकारसे भांगरा, आक, कठसरइया, कदंव, निर्गुण्डी और प्रमुख, सुरस (तुलसीकी जाति ),बनतुलसी, काण्डीर, कालमालक, पर्णाश, क्षवक और फाणि ज्झक यह मरुएंकी जातिये । मौलसरी, कुडा, सत्यानाशी, तुलसी इनसे किसी एकके स्वरसको पूर्वोक्त रीतिपर निकालकर उस रसमें लालचारलोंके आटेको मांडकर पूडिथे वनावे उन पूडियोको जंगली उपलोंकी नि म अग्निपर पकाकर पूर्वोक्त गीतले कृमि कोष्ठवाले मनुष्यको खिलावे अथवा अपामार्ग, चिरायता, सुवहा, हरड,वहेडे,आमले इन सबसे किसी एकके स्वरसमें तथा दोनोंके स्वरसको मिलाकर अथवा सबके रसमें लालचावलके आटेकी पूड़ियें वनावे उनको शहद लपेटकर प्रात:काल कृमियोंवाले रोगीको खिलावे अथवा उपरोक्त सवं औषधियोंके रसमें या किसी एकके स्वरसमें शहद मिलाकर भोजनसे प्रथम प्रातःकाल * पीनेके लिये देवे ॥ २७॥ ___ अथाश्वशकृदाहृत्यमहतिाकलि प्रस्ती-तपेशोषयित्वोलुख. लेक्षोदयित्वादृषदिपुनः सूक्ष्माणिचूर्णानिकारयित्वाविडंगकपायेणत्रिफलाकषायेणवाअष्टकत्वोदशकृत्वोवाआतंपेसुपरिभावितानिभावायत्वादृषादपुनःसूक्ष्माणिचूर्णानिकारयित्वानवेक
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy