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________________ (४५४) चरकसंहिता-भा० टी०॥ तीक्ष्ण, धूप, अग्नि, संताप, श्रम, क्रोध और विषम आहारके सेवनसें पित्तप्रकृति मनुष्यके शरीरमें पित्तका शीघ्र प्रकोप होजाताहै ॥ २० ॥ तत्प्रकुपितंतयैवानुपूर्व्याप्रमेहानिमान्षदाक्षिप्रमभिनिर्वर्त्तयति॥२१॥ वह कुपित हुआ पित्त पूर्वोक्त क्रमसे मेदादिकोंको दूषित करता हुआ छाप्रकारके प्रमेहोंको उत्पन्न करताहै ॥ २१॥ छः प्रमेहोंके नाम। तेषामपिचपित्तगुणविशेषेणनामविशेषाः । तद्यथा-क्षारप्रमेहश्चकालमेहश्चनीलमेहश्चलोहितमेहश्चमञ्जिष्ठामेहश्चहरिद्रामेहश्चेतितेषड्भिरेवक्षाराम्ललवणकटुकविस्रोष्णैःपित्तगुणैः पूर्वव समन्विताः ।सर्वएवतेयाप्या:विषमगुणमेदःस्थानत्वाद्विरुद्धो- : पक्रमत्वाच्चेति ॥२२॥ उन छ ओंके पित्तगुणके भेदसे छःप्रकारके नाम होतेहैं । जैसे-क्षारमेह, कालमेह, नीलमेह, लोहितमेह, मंजिष्ठामेह, हरिद्रामेह, यह छाप्रकारके ही प्रमेह-क्षार, अम्ल, लवण, कटु, विस्त्र, उष्ण इन पित्तके गुणोंसे युक्त होतेहैं । यह पित्तके छःप्रकारके प्रमेह-मेदके गुणोंसे विरुद्ध क्रिया द्वारा शान्त होनेवाले होनेसे याप्य साध्य होते, अर्थात् इन पित्तजनित विकारोंको शान्त करनेवाली क्रिया मेदके विकारोंकों शमन करनेवाली नहीं होसकती इसलिये चिकित्सामें विषमता पडनेसे इन प्रमेहोंको याप्य साध्य कहाहै ॥ २२ ॥ क्षारमेहीके लक्षण । तत्र श्लोकाः। पित्तप्रमेहविज्ञानार्थाः। गन्धवर्णरसस्पर्शर्यथाक्षारस्तथात्मकम् । पित्तकोपान्नरोमूत्रंक्षारमेहीप्रमेहति ॥ २३॥ उन पित्तके प्रमेहोंके विज्ञानके लिये यहांपर श्लोक कहतेहैं । क्षारप्रमेहमेंपित्तके कोपसे गंध, वर्ण, रस और स्पर्श यह सब क्षारके समान गुणोंसे युक्त मूत्र होताहै ॥ २३ ॥ कालमेहीके लक्षण । मसीवर्णमजलंयोमूत्रमुष्णंप्रमेहति । । पित्तस्यपरिकोपेनतंविद्यात्कालमेहिनम् ॥ २४॥
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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