SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 513
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ निदानस्थान - अ० ४. ( ४५५ - पित्तके कोपसे स्याहीके समान काला और गर्म मूत्र जिसको नित्य आता है उसको कालमेही कहते हैं ॥ २४ ॥ नीलमहीके लक्षण | चाषपक्षनिभं मूत्रमम्लं मे हतियोनरः । पित्तस्यपरिकोपेनतविद्यान्नील मेहिनम् ॥ २५ ॥ जिसका नीलकंठके पंख के समान - नीलवर्णका मूत्र थोडा थोडा आता है उसको नीलमही कहतेहैं ॥ २५ ॥ रक्तमेहीके लक्षण । विस्रंलवणमुष्णञ्चरक्तंमेहतियोनरः । पित्तस्यपरिको पेनतविद्याद्रक्तमेहिनम् ॥ २६ ॥ रक्तमेही मनुष्यको - आमकीसी गंधयुक्त, नमकीन, गर्भं तथा रक्तके समान सूत्र. आता है - उसको रक्तमेही कहते हैं ॥ २६ ॥ मञ्जिष्ठमेह के लक्षण | मजिष्ठा रूपियोऽजस्रं भृशविस्रंप्रमेहति । पित्तस्यपरिकोपात्तंविद्यान्माञ्जिष्ठमेहिनम् ॥ २७ ॥ जिस मनुष्यको मंजीठके समान बहुत गंधवाला नित्य मूत्र आता है उसको मंजि ष्ठामेही कहते हैं ॥ २७ ॥ हरिद्राहोंके लक्षण | हरिद्रोदकसङ्काशं कटुकंयः प्रमेहति । पित्तस्यपरिकोपात्तुविद्यादारिद्रमेहिनम् ॥ इतिषट्प्रमेहाः पित्तप्रकोपनिमित्ताव्या ख्याताः ॥ २८ ॥ जिस मनुष्यको हल्दी के समान वर्णवाला और कटुमूत्र आता है उसको हरिद्रामेही कहते हैं । इस प्रकार पित्तके कोपसे उत्पन्न हुए छः प्रमेहिओं का कथन किया गया है । इति पित्तजनितषट्प्रमेहाः ॥ २८ ॥ वातप्रमेह होने का कारणकटुककषायतिक्तरूक्षलघुशीतव्यवायव्यायामवमनविरेचनास्थापन शिरोविरेचनातियोगसन्धारणानशनाभिघातात पोद्वेगशोकशोणिताभिषेकजागरणविषमशरीरन्यासानभ्युपसेवमा
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy