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________________ । निदानस्थान-अ०.४.० (४५३). शीतमेहके लक्षण.. अत्यर्थशीतमधुरंमूत्रंक्षरतियोभृशम् । शीतमेहिनमाहुस्तंपुरुषश्लेष्मकोपतः ॥ १६ ॥ जिस मनुष्यका मूत्र-अधिक, शीतल एवम् मधुर उतरता है उसको कर्फजनित शीतमेही कहतेहैं ॥ १६ ॥ सिकतामेहके लक्षण । मून्मित्रगतान्दोषानणूनमेहतियोनरः। सिकतामेहिनंविद्यान्नरतंश्लेष्मकोपतः॥ १७ ॥ जिस मनुष्यका मूत्र-कठिन स्पर्शवाले रेतकेसे कणकोयुक्त हो उसको सिकता. मेही कहतेहैं ॥ १७ ॥ शनैर्मेहके लक्षण । मन्दमन्दमवेगन्तुकच्छंयोमूत्रयेच्छनैः। शनैर्मेहिनमाहुस्तपुरुषंश्लेष्मकोपतः ॥१८॥ जिस मनुष्यके कफ कोपके कारण वेगरहित थोडा २. एवम्, शनैः शनैः मूत्र आता हो उसको शनैर्मही कहते हैं ॥ १८॥ . आलालमेहके लक्षण । '. तन्तुबद्धमिवालालंपिच्छिलंयःप्रमेहति। आलालमहिनंविद्यान्तं. नरंश्लेष्मकोपतः॥इत्येते दश प्रमेहाः श्लेष्मप्रकोपनिमित्ता - व्याख्याताः ॥ १९ ॥ जिस मनुष्यको-तंतुओंके समान, पिच्छिल, लारयुक्त मूत्र आता हो उसको लालामेही कहतेहैं । इस प्रकार कफकोपसे उत्पन्न हुए दश प्रकारके प्रमेहोंका कथन कियागयाहै । इति कफजनित दशमेह ॥ १९ ॥ पित्तप्रमेहका लक्षण । उष्णाम्ललवणक्षारकटुकाजीर्णभोजनोपसविनस्तथातितीक्ष्णातपाग्निसन्तापश्रमक्रोधविषमाहारोपसेविनश्चतथात्मकशरीरस्यैवक्षिप्रंपित्तप्रकोपमापद्यते ॥ २०॥ अव पित्तके प्रमेहोंके कारणोंको कहतेहैं । गर्म, खट्टे, नमकीन चरपरे एवम् अजीर्णकर्ता पदाथोंके सेवनसे तथा अजीर्णमें भोजनके करनेसे एवम् अत्यन्त
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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