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________________ चरकसंहिता-मा० टी०। यह.दो चतुष्क-सायनपाद और वाजीकरण पाद इन नामोंसे दो अध्याय माने जातेहैं ('इन दोनों के आठ विभाग करनेसे चिकित्सास्थानके छत्तीस अध्याय होजा: तेहैं इसलिये इन दो चतुष्कोंको दो अध्यायोंमें माना है ) ॥ १२ ॥ ज्वराणांरक्तपिक्तस्यगुल्मानांमेहकुष्ठयोः। शोषेऽर्शसमतीसारें - वीसचमदात्यये ॥५३॥ द्विव्रणीयतथोन्मादेस्यादपस्मारएव च । क्षतशोथोदरेचैवग्रहणीपाण्डुरोगयोः ॥५४॥ हिक्काश्वासे चकासेचछर्दितृष्णाविषेषु च। मर्मत्रयेचोरुलादेसवातेवातशोणिते ॥ ५५ ॥ त्रिशचिकित्सितान्येवंयोनीनांव्यापदासह ।। ५६ ॥ ज्वरचिकित्सित, रक्तपित्त चिकिसित, गुल्मचिकित्सित, प्रमेहः चिकित्सित, कुष्ठचिकित्सित, शोषचिकित्सित, अर्थचिकित्सित, अतिसार चिकित्सित, विसर्प चिकित्सित, मदात्ययचिकित्सित, द्वितीय चिकित्सित, उन्मादचिकित्सित,अपस्मार चिकित्सित, क्षतक्षीण चिकित्सित, शोथचिकित्सित, उदररोग चिकित्सित, ग्रहणीरोग चिकित्सित, पांडुचिकित्सित, हिक्काश्वास चिकित्सित,काशचिकित्सित, छचिकित्सित, तृष्णाचिकित्सित विषचिकित्सित, त्रिमर्मीय चिकित्सित, ऊरुस्तम्भ चिकित्सित, वातव्याधिचिकित्सिंत, और वातरक्तचिकित्सिंत एवम् योनियांपदचिकित्सित-यह सव मिलाकर चिकित्सास्थानोक्त तीस अध्याय हुए अर्थात् इन तीस अध्यायोंसे चिकित्सास्थ न पूरितह ।। ५३ ॥ ५४॥ ५५ ॥५६॥ इति चिकित्सास्थानोक्तत्रिंशकम् ।। कल्पस्थानके अध्यायोंके नाम । फलजीमूतकेक्ष्वाकुकल्पोधामार्गवस्यचा पञ्चमोवत्सकस्योक्तः षष्ठश्चकृतवेधने ॥ ५७ ॥ श्यामात्रिवृतयोःकल्पस्तथैवचतुरं.. गुले। तिल्वकस्यसुधायाश्चसमलाशंखिनीष्वपि । दन्तीद्रव... त्यो कल्पश्चद्वादशोऽयंसमाप्यते ॥ ५८ ॥ . . कल्पस्थानमें-मदनकल्प, जीमूतकल्प, इक्ष्वाकु कल्प, धामार्गव कल्प, वत्सक 'कल्प, कृतवेधन कल्प श्यामात्रिवृत् कल्प, चतुरंगुल कल्प, तिल्वक् कल्पं, महावृक्ष कल्प, सप्तला शंखिनी कल्प और दंती द्रवन्तीकल्प-यह बारह कल्पस्थानोक्त अध्याय समाप्त हुए ॥ ५७॥ ५.८ ॥ । इति कल्पस्थानोक्तद्वादशकम् । . . . . . . सिद्धिस्थानके अध्यायोंके नाम। कल्पनापञ्चकर्माख्याबस्तिसूत्रातथैवच । स्नेहव्यापादिकासि
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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