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________________ सूत्रस्थान - अ० ३०. (४१) द्वित्रव्यांपादिकातथा ॥ ५९ ॥ सिद्धिः शोधनयोश्चैवबस्तिसेि- ' द्विस्तथैवच॥प्रासृती मर्म संख्यातासिद्धिर्वस्त्याश्रयाचया ॥ ६०॥ :फलमात्रातथासिद्धिःसिद्धिश्चोत्तरसंज्ञिता ॥ सिद्धयोद्वादशैवैतास्तन्त्रञ्चासुसमाप्यते ॥ ६१ ॥ सिद्धिस्थान में - कल्पना सिद्धि, पंचकमयसिद्धि, वस्तिमुत्रीयसिद्धि, स्वेदव्यापादिका सिद्धि, नेत्रव्यापादिकासिद्धि, वमन विरेचन व्यापत सिद्धि, वस्तिव्यापादिका सिद्धि, प्रामृत योगका सिद्धि, त्रिममयसिद्धि, वस्ति सिद्धि, फलमा त्रासिाद और उत्तर सिद्धि इन बारह अध्यायोंसे सिद्धिंस्थान समाप्त किया है ॥ ५९ ॥ ६० ॥ ६१ ॥ इति सिद्धिस्थानोक्तद्वादशकम् ।' 'स्यानार्थ अध्यायार्थ और प्रश्नका लक्षण | स्वेस्वेस्थान तथाध्याये चाध्यायार्थः प्रवक्ष्यते ॥ तंत्रयात्सर्वतः सर्वयथास्वार्थसंग्रहात् ॥ ६२ ॥ पृच्छा तन्त्राद्यथाम्नायंविधिना प्रश्नउच्यते । : . हरएक स्थान में तथा अध्याय में स्थानार्थ (स्थानका विषय ) और अध्यायका: विषय वर्णन कियागया है तो उसको उसी उसी अध्याय और उसीउसी स्थानके: विषय के अनुसार स्थानार्थ और अध्यायार्थ कथन करना चाहिये । यदि कहीं, किसी अध्यायके विषय में कुछ आग पांछे हो अथवा नामानुरूप विषय में कुछ न्यूनता आर्त हो तो बुद्धिमान वैद्यको बुद्धि अनुसार विचारकर स्थानार्थ अथवा, अध्यायार्थं कहना चाहिये वेदानुसार प्रसंगक्रमसे तंत्रमें पूछनेको प्रश्न कहते हैं ॥ ६२ ॥ प्रश्नार्थका लक्षण | प्रश्नाथै युक्तिमांस्तस्य तन्त्रेणैवार्थनिश्चयः ॥ ६३ ॥ 'युक्तियुक्त तंत्रद्वाराही उस प्रश्नकी मीमांसा किये जानेको प्रश्नार्थ कहते हैं ॥ ६३ ॥ तन्त्रादिकी निरुक्त । निरुक्तंतन्त्रणा तन्त्रस्थानमर्थ प्रतिष्ठया । अधिकृत्यार्थमध्यायनामसंज्ञाः प्रतिष्ठिताः ॥ ६४ ॥ सव विषयोंको इसमें तंत्रण किया गया इसलिये इसका तंत्र कहते हैं । अर्थ (विषय) प्रतिष्ठित अर्थात् स्थित होनेसे स्थान कहा जाताह (जैसे सूत्रस्थानादि ) ॥ ६४ ॥ इतिसर्वयथाप्रश्नमष्टकंसम्प्रकाशितम् । कारस्न्येनचोक्तस्तन्त्रस्य संग्रहः सुविनिश्चितः ॥ ६५ ॥
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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