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________________ चरकसंहिता - भा० टी० । स्वेदनके अयोग्य अंग । वृपणौहृदयंदृष्टीस्वेदयेन्मृदुनैववा । मध्यमं वंक्षणौशेषमङ्गावयवमिष्टतः ॥ ८ ॥ अंडकोश, हृदय, और नेत्रांमं स्वेदन करना उचित नहीं, यादे किसी कारण से मावश्यकता भी हो तो मृदु स्वेद करे । और वंक्षणमें स्वेद करना हो तो मध्यम स्वेद करे | किन्तु अन्य अंगाम जैसा उचित हो वैसा स्वेदन करे ॥ ८ ॥ नेत्र स्वेदन विधि | सुशुद्धैर्नक्तकैः पिण्ड्या गोधूमानामथापिवा । पद्मोत्पलपलाशैर्वास्वेद्यः संवृत्यचक्षुषी ॥ ९ ॥ शुद्ध स्वच्छ नरम वस्त्रसे या गेहके मैदे के पिंडसे अथवा कमलके पत्रसे या अन्य कमलविशेषके पत्रसे नेत्रांको ढककर शिर आदिमं स्वेद करना चाहिये । तात्पर्य यह हूँ कि नेत्राम स्वेदन करने की गर्मी न पहुँचनी चाहिये ॥ ९ ॥ मुक्तावलीभिः शीताभिः शीतलैर्भाजनैरपि । ₹ १६० ) जलार्द्रैर्जलजैर्हस्तैः स्विद्यतो हृदयंस्पृशेत् ॥ १० ॥ मोतियांकी माला, शीतल पात्र, पानीमें भिगोया हुआ कमलविशेष, अथवा, शीतल हाय स्वेदन योग्य मनुष्य के हृदय पर रखना चाहिये ॥ १० ॥ शीतशृलव्युपरमे स्तम्भगौरवनिग्रहे । सञ्जतेमा देवस्वेदेस्वेदनाद्विरतिर्मतां ॥ ११ ॥ शीत, शूल, जडता, भारोपन, यह नष्ट होकर जब देहमें नरमी आजाय तो पसीना देना बंद करदेना चाहिये ॥ ११ ॥ पित्तप्रकोपोमूर्च्छाचशरीरसदनंतृषा । दाहस्वेदाङ्गदौर्बल्यमतिस्विन्नस्यलक्षणम् ॥ १२ ॥ अधिक पसीना देनेसे पित्तका कोप, मूछी, शरीरमं शिथिलता, प्यास, दाह, पीना, और अंगाम दुर्बलता यह लक्षण होते ॥ १२ ॥ उक्तस्तस्वाशितीये यांयैप्मिकः सर्वशोविधिः । सोऽतिस्त्रिन्नस्यकर्तव्योमधुरः स्निग्धशीतलः ॥ १३ ॥ ऐसा होनेपर तस्याशितीय (छठे अध्यायमें जो ग्रीष्मकालकी विधि कहीं है वही विधि अतिविक करे और मधुर, स्निग्ध, शीतल क्रिया करे ।। १३ ।।
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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