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________________ ( १६१ ) सूत्रस्थान - अ० १४. स्वेदनकर्मके अयोग्य रोगी । कषायमद्यनित्यानांगर्भिण्यारक्तापीत्तनाम् । पित्तिनांसातिसाराणां रूक्षाणां मधुमेहिनाम् ॥ १४ ॥ विदग्धभ्रष्टनाडीनां विषमद्यविकारिणाम् । श्रान्तानांनष्टसंज्ञानांस्थूलानांपित्तमे - हिनाम् ॥ १५ ॥ तृष्यतांक्षाधितानाञ्चक्रुद्धानांशोचतामपि । कामल्युदारणाञ्चैव क्षतानामाढयरोगिणाम् ॥ १६ ॥ दुर्बलातिविशुष्काणामुपक्षीणौजसांतथा । भिषक्तैमिरिकाणाञ्च नस्वेदमवतारयेत् ॥ १७ ॥ 1 1 नित्य कषाय या मद्य पान करनेवालेको, गर्भवती, रक्तपित्तवाला, पित्तप्रधान पित्तके अतिसारखाला, रूक्ष, मधुमही, अग्निदग्ध, भ्रष्टांग, बदका रोगवाला, विष तथा मद्यके विकारवालेको, कायलीयुक्तको, मूर्छित, स्थूल, पित्तमेहयुक्त, प्यासयुक्त भूखा, क्रोधी, शोकयुक्त, कामलारोगी, उदररोगी, क्षतरोगी, यकृत प्लीहाकें रोगवालेको, दुर्बल, अतिसुखाहुवा और जिसका ओज क्षीण होगयाहो, तथा तिमि . ररोगवाला इनको कभी स्वेदन न करे ॥ १४ ॥ १५ ॥ १६ ॥ १७ ॥ स्वेदनके योग्य रोग । प्रतिश्याये चकासेचहिक्काश्वासेष्वलाघवे । कर्णमण्यांशिरःशूले स्वरभेदेगलग्रहे ॥ १८ ॥ अर्दितैकाङ्गसर्वाङ्गपक्षाघातविनामके । कोष्ठानाहविबन्धेषु शुक्राघाते विजृम्भके ॥ १९ ॥ पार्श्वपृष्ठकटीकुक्षिसंग्रहेगृध्रसीषुच । मूत्रकृच्छ्रे महत्त्वचमुष्कयारेङ्गमर्दके ॥ २० ॥ पादोरुजानुज द्वार्तिसंग्रहे श्वयथावपि । खल्लीब्वामेषुशीतेचवेपथौवातकण्टके ॥ २१ ॥ संकोचायामशूलेषु स्तम्भगौरवसुतिषु । सर्वाङ्गेषुविकारेषु स्वेदनहितमुच्यते ॥ २२ ॥ प्रतिश्याय, खांसी, हिचकी, श्वास, गुरुता, कर्णशूल, मन्यास्तंभ, शिरःशूल स्वरभंग, गलग्रह, अर्दितवात, एकांगगतवात, सर्वांगगतवात, पक्षाघात, विनाम ( शरीरका या किसी अंगका नमजाना कुवडा आदि), कोष्ठरोग, अनाह, विबंध, शुक्राघात, विशेष जंभाई आना, पसलशूल, पृष्ठशूल, कटिशूल, कुक्षिशूल, गृध्रसी, मूत्रकृच्छ्र, अडवाद्ध, अंगमर्द, उरुस्तंभ, जानु और जंघाकी पीडा, सूजन, खल्ली, आमरोग, शीत, कंप, वातकंटक, संकोच, आयाम, शूल, अंगोंकी गौरवता, और ११ 1
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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