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________________ सूत्रस्थान - अ० १४. शुष्काण्यपिहि काष्ठानि स्नेहस्वेदोपपादनैः । नमयन्तियथान्यायंकिंपुनर्जीवतोनरान् ॥ ३ ॥ सूखी लकडीभी चिकनाईका योग देकर स्वेदन करनेसे नमजाती है, यदि जीवित मनुष्य स्नेहन स्वेदन द्वारा नम्र होजाय तो आश्चर्य ही क्या है ॥ ३ ॥ स्वेदनसे कार्यसिद्धि | रोगव्याधितापेक्षोनात्युष्णोऽतिमुदुर्नच । द्रव्यवान्कल्पितोदेशेस्वेदः कार्य्यकरोमतः ॥ ४ ॥ जैसा रोग और ऋतु हो अथवा अन्य कोई भी व्याधि हो उसमें उस रोगके लिये जैसा स्वेद उचित हो वैसा विचारकर करे । विना विचारे अत्यन्त तेज या अत्यन्तै मन्द स्वेद न देवे । देश काल औषधि विचारकर उचित स्थानमें स्वेद दिया हुआ गुणकारी होता है ॥ ४ ॥ (198) स्वेदनके भेद | व्याधौशीतशरीरेच महानूस्वदो महाबले । दुर्वलेदुर्बलः स्वेदोमध्यमे मध्यमोहितः ॥ ५ ॥ जब रोगसे शरीर शीतल पडजाय उसमें गर्मी रोममार्गसे न आती हो अथवा शीत आदिसे शरीर जडजाय तो अवश्य स्वेदन करना चाहिये । यदि व्याधि बलवती हो तो स्वेद भी वैसा ही अधिक बलवाला देना चाहिये । दुर्बल रोगों में दुर्बल स्वेद करना और मध्यवल रोगमें स्वेद भी मध्यम ही करना चाहिये ॥ ५ ॥ रोगानुसार स्वेदनविधि ! वातश्लेष्मजिवातेवाक फेवास्वेदइष्यते । स्निग्धरूक्षस्तथास्निग्धोऽरूक्षश्चाप्युपकल्पितः ॥ ६ ॥ बात कफ की व्याधिमें स्निग्ध, रूक्ष, स्वेद करना चाहिये वातव्याधिमें स्निग्ध स्वेद करना चाहिये | और कफकी व्याधिमें रूक्ष स्वेद करना चाहिये ॥ ६ ॥ आमाशयगतेवातेकफे पक्काशयाश्रिते । रूक्षपूर्वोहितःस्वेदःस्नेहपूर्वस्तथैवच ॥ ७ ॥ वात आमाशय में प्राप्त हो तो पहले रूक्ष फिर स्निग्ध स्वेद करे क्योंकि आमायं कफका स्थान होता है । इसी प्रकार याद कफ पक्काशय में हो तो पहले स्निग्ध स्वेद करके फिर रूक्ष स्वेद करे ॥ ७ ॥ "
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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